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CAA विरोधी प्रदर्शन में रिकवरी नोटिस वापस ले यूपी सरकार, नहीं तो...: SC

उत्त्तर प्रदेश सरकार को इन नोटिसों और कार्यवाही वापस लेने का अंतिम अवसर देते हुए कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया, तो उन कार्यवाही को कानून के उल्लंघन के मामले में खारिज कर दिया जाएगा.

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Nihar Saxena
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SC

अगले शुक्रवार तक जवाब दाखिल करने को भी कहा सुप्रीम कोर्ट ने.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर 2019 में नागरिकता विरोधी प्रदर्शनों (सीएए) के दौरान सरकारी संपति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए इसमें शामिल लोगों से इसे वसूलने संबंधी नोटिसों पर कड़ा रुख अपनाते हुए शुक्रवार को इन्हें वापस लेने को कहा. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने मामले की सुनवाई करते हुए उत्त्तर प्रदेश सरकार को इन नोटिसों और कार्यवाही वापस लेने का अंतिम अवसर देते हुए कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया, तो उन कार्यवाही को कानून के उल्लंघन के मामले में खारिज कर दिया जाएगा.

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शीर्ष अदालत के कानून के विपरीत कार्यवाही

उन्होंने कहा, 'कार्यवाही वापस ले लें या हम इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन करने के लिए इसे रद्द कर देंगे.' पीठ ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपी की संपत्तियों को कुर्क करते समय शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक की तरह काम किया. उसने बताया कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्यवाही शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत थी.

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800 दंगाइयों के खिलाफ 100 प्लस एफआईआर

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि 800 से अधिक दंगाइयों के खिलाफ 100 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गईं और उनके खिलाफ 274 वसूली नोटिस जारी किए गए. उन्होंने कहा कि 236 मामलों में वसूली आदेश पारित किए गए जबकि 38 मामलों को बंद कर दिया गया. उन्होंने वर्ष 2020 में अधिसूचित नए कानून का हवाला देते हुए तर्क दिया कि इसके लिए दावा न्यायाधिकरण स्थापित किए गए थे, जिनकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों ने की थी. इससे पहले इनकी अध्यक्षता अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) कर रहे थे. पीठ ने उच्चतम न्यायालय के 2009 और 2018 के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों को दावा न्यायाधिकरण में नियुक्त किया जाना चाहिए था, लेकिन राज्य सरकार ने उनके स्थान पर अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की नियुक्ति की.

सरकार ने रखा अपना पक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने पक्ष रखते हुए कहा कि उन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 451 पुलिसकर्मी घायल हो गए और इसके समानांतर आपराधिक कार्यवाही और वसूली की कार्यवाही की गई. इस पर पीठ ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार को कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, इसमें कहा गया है, 'कृपया इसकी जांच करें, हम 18 फरवरी तक एक मौका दे रहे हैं.' न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने गरिमा प्रसाद से कहा, यह याचिका दिसंबर 2019 में भेजे गए नोटिसों के केवल एक सेट से संबंधित है. आप उन्हें एक ही आदेश से वापस ले सकते हैं. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 236 नोटिस कोई बड़ी बात नहीं है.

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अगले शुक्रवार तक मांगा सरकार से जवाब

न्यायालय ने दोहराया कि वह नए कानून के तहत पहले की गई कार्यवाही को रद्द कर देगा और यह भी स्पष्ट किया कि जो कार्यवाही लंबित है वह नए कानून के तहत होगी. पीठ ने सुश्री प्रसाद से कहा, आप हमें अगले शुक्रवार को बताएं कि आप क्या करना चाहती हैं और हम इस मामले में आदेश जारी कर इसे बंद कर देंगे. न्यायालय ने परवेज आरिफ टीटू की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं, जिन्होंने कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की थी और दावा किया था कि इस तरह के नोटिस मनमाने तरीके से भेजे गए हैं. जिला प्रशासन ने ये नोटिस उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भेजे थे. याचिका में कहा गया है कि एक ऐसे व्यक्ति को भी नोटिस भेजा गया था, जिसकी छह साल पहले 94 साल की उम्र में मौत हो गई थी.

HIGHLIGHTS

  • 800 दंगाइयों के खिलाफ 100 से अधिक एफआईआर
  • कार्यवाही शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत
  • सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों में 274 को वसूली नोटिस जारी 
Up government Anti CAA Protest Supreme Court यूपी सरकार रिकवरी नोटिस सुप्रीम कोर्ट सीएएस विरोधी आंदोलन Recovery Notice
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