अयोध्या जमीन विवाद (Ayodhya Land Case) में आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. इससे पहले 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुलझाने के लिए गठित मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त तक का समय दिया था. दरअसल हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने मध्यस्थता मे कोई ठोस प्रगति न होने की बात कहते हुए कोर्ट से मध्यस्थता बंद कर मुख्य मामले की जल्द सुनवाई की मांग की है. बता दें कि कोर्ट ने बातचीत से समाधान की संभावना तलाशने के लिए पूर्व जज एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल गठित की है.
यह भी पढ़ें : संकट में कांग्रेस: अब गोवा में घमासान, कांग्रेस के 10 विधायक BJP में शामिल
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में मध्यस्थता पैनल गठित कर मार्च में आठ हफ्ते का समय दिया था. 6 मई को पैनल के अनुरोध पर 15 अगस्त तक समय बढ़ा दिया. इस बीच मंदिर पक्षकारों ने भी गैर विवादित जमीन पर निर्माण कार्य शुरू करने की मंज़ूरी देने की याचिका लगाई थी. मूल याचिकाकर्ताओं में से एक गोपाल सिंह विशारद ने मंगलवार को कोर्ट को बताया कि मध्यस्थता से ठोस सफ़लता नहीं मिल रही है. लिहाजा पैनल को भंग कर मूल मामले की सुनवाई शुरू की जानी चाहिए. कोर्ट ने विशारद के अनुरोध पर आज सुनवाई करने की बात कही थी.
जानें मध्यस्थता पैनल के बारे में
मध्यस्थों पैनल में जस्टिस खलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शामिल हैं. कमेटी के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर मीडिया रिपोर्टिंग न होने देने का आदेश दिया था. मध्यस्थता कमेटी में श्रीश्री रविशंकर को शामिल किए जाने पर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा था कि उम्मीद है कि मध्यस्थ अपनी जिम्मेदारी समझेंगे. मध्यस्थता को लेकर हिंदू पक्षकारों ने कहा था कि इस मामले को एक बार फिर लटकाने की कोशिश की गई है.
यह भी पढ़ें : टीम इंडिया की हार से सट्टेबाजों को 100 करोड़ रुपये का नुकसान
क्या है अयोध्या मामला
मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था. हिंदुओं का दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था.