सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण एक्ट के तहत तुंरत गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाले फैसले पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई जुलाई तक के लिए टाल दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले शिकायत की जांच करने का आदेश अनुच्छेद-21 मे व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि सभ्य समाज में इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती, जहां किसी पर हमेशा ये तलवार लटकी रहे कि उसे कभी भी एकतरफा बयान के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार भी कोई ऐसा कानून नहीं बना सकती जो अनुच्छेद-21 (जीने और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार) का उल्लंघन करता हो।
सुप्रीट कोर्ट ने कहा, 'कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वो समाज में रह रहे लोगों की व्यक्तिगत आजादी सुनिश्चित करे।'
क्या है मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस एससी/एसटी अत्याचार निवारण एक्ट-1989 के दुरुपयोग होने का हवाला देते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था।
इसके साथ ही ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान भी किया गया था। जबकि मूल कानून में अग्रिम जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है।
कोर्ट के फैसले के अनुसार दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से पहले डिप्टी एसपी या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी आरोपों की जांच करेगा और फिर कार्रवाई होगी।
केंद्र सरकार ने दायर की थी पुनर्विचार याचिका
सुप्रीम कोर्ट के इस कानून को 'कमजोर' किए जाने के फैसले को लेकर विपक्षी पार्टियों और कुछ बीजेपी नेताओं के दवाब के बाद केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
बता दें कि कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को प्रदर्शन भी किया था जिसमें कई राज्यों में हिंसा हुई थी। इस हिंसा में देश भर में 11 लोगों की मौत हुई थी।
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई जुलाई तक के लिए टाल दी
- कोर्ट ने कहा कि एक्ट के तहत तुंरत गिरफ्तारी अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करता है
- कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश भर में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को प्रदर्शन किया था
Source : News Nation Bureau