सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को एक अविवाहित युवती की याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया। इस याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें 23 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया है।
महिला का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का जिक्र किया और इस पर तत्काल सुनवाई की मांग की।
न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, अभी हमें कागजात दिए गए हैं। देखते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सप्ताह की गर्भावस्था को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, 25 वर्षीय अविवाहित युवती, जिसकी गर्भावस्था एक सहमति का परिणाम है, उसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी खंड द्वारा कवर किया गया है। युवती ने अपनी याचिका में कहा है कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती, क्योंकि वह एक अविवाहित है और उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है।
याचिका में आगे कहा गया है कि विवाह न होने पर बच्चे को जन्म देने से उसका सामाजिक बहिष्कार होगा और उसे मानसिक पीड़ा झेलनी होगी। चूंकि वह महज बी.ए. पास है और गैर-कामकाजी है, वह बच्चे को संभालने में सक्षम नहीं होगी।
युवती ने अपनी याचिका में कहा कि वह मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं है और गर्भावस्था को जारी रखने से उसे गंभीर शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचेगी।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा, अधिनियम की धारा 3 (2) (ए) कहता है कि चिकित्सक गर्भावस्था को समाप्त कर सकता है, बशर्ते गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक न हो। अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) उन परिस्थितियों में गर्भ नष्ट करने का प्रावधान करती है, जब गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक हो, लेकिन 24 सप्ताह से अधिक नहीं हो।
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Source : IANS