राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई करते हुए मोदी सरकार को सौदे को लेकर क्लीनचिट दे दी है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि राफेल फाइटर जेट की खरीददारी में कोई खामी नहीं है और इसपर सवाल उठाना गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कीमत की समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि किसी को व्यवसायिक लाभ पहुंचाया गया हो. कोर्ट ने डील से संबंधित चारों याचिकाओं को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि देश को इस फाइटर जेट की जरूरत है और इसमें किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने राजनीतिक दलों के इसे मुद्दा बनाने पर कहा कि किसी एक व्यक्ति की राय या विचार से काई सौदा नहीं होता है और इसे घोटाला नहीं कहा जा सकता.
राफले सौदे के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले देश के नामी वकील प्रशांत भूषण ने कहा, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा इसमें किसी जांच की जरूरत नहीं है, जो सरकार ने नियम अपनाया वो ठीक ही लगता है और जो पार्टनर का चयन किया गया है वो भी राफेल कंपनी ने चुना है. इस आधार पर कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया गया है. हमारे हिसाब से यह गलत फैसला है. हम तो सिर्फ जांच की मांग कर रहे थे.
वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने सौदे पर लोगों को गुमराह किया और अब उन्हें माफी मांगनी चाहिए. दूसरी तरफ बीजेपी प्रवक्ता शाइना एनसी ने इस फैसले को लेकर कहा कि यह सच्चाई की जीत है और अब कांग्रेस के पास सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा बचा ही नहीं है.
इससे पहले केन्द्र सरकार ने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे का पुरजोर बचाव किया और इनकी कीमत से संबंधित विवरण सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया था. वहीं दूसरी तरफ मुख्यविपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए सबसे बड़ा घोटाला करार दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को कांग्रेस के लिए एक बड़े झटके की तरह माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस बेहद आक्रमक तरीके से इसे लोकसभा चुनाव 2019 में मुद्दा बनाने की तैयारी में थी
बता दें कि राफेल विमान सौदा 2012 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ था. शुरुआत में, भारत ने फ्रांस से 18 ऑफ द शेल्फ जेट खरीदने की योजना बनाई थी. इसके अलावा 108 विमानों का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाना था.
59 हजार करोड़ के राफेल सौदे में फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉल्ट की रिलायंस मुख्य ऑफसेट पार्टनर है. फ्रांस की एक वेबसाइट ने इस डील से लेकर एक नई रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में दसॉल्ट एविएशन के कथित डॉक्यूमेंट इसकी पुष्टि करते हैं कि उसके पास अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर चुनने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था.
जानें राफेल (Rafale) के बारे में
1. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में लड़ाकू विमान खरीदने की बात चली थी. पड़ोसी देशों की ओर से भविष्य में मिलने चुनौतियों को लेकर वाजपेयी सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा था.
2. काफी विचार-विमर्श के बाद अगस्त 2007 में यूपीए सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई में 126 एयरक्राफ्ट को खरीदने की मंजूरी दी गई. फिर बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया.
3. बोली लगाने की रेस में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल (Rafale), ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35 जैसे कई कंपनियां शामिल हुए लेकिन बाजी डसाल्ट एविएशन के हाथ लगी.
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4. जांच-परख के बाद वायुसेना ने 2011 में कहा कि राफेल (Rafale) विमान पैरामीटर पर खरे हैं. जिसके बाद अगले साल डसाल्ट एविएशन के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि तकनीकी व अन्य कारणों से यह बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.
5. काफी दिनों तक मामला अटका रहा. नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राफेल (Rafale Deal) पर फिर से चर्चा शुरू हुई. 2015 में पीएम मोदी फ्रांस गए और उसी दौरान राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता किया गया. समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल (Rafale) लेने की बात की.
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Source : News Nation Bureau