सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लिविंग विल और इच्छा मृत्यु को दिशानिर्देशों के साथ मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने कहा कि मनुष्यों को सम्मान के साथ मरने का हक है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद एक बुज़ुर्ग जोड़ा ऐसा भी है जो ख़ुश नहीं हैं।
इच्छामृत्यु की मांग कर रहे मुंबई के नारायण लावटे (87) और उनकी पत्नी इरावती (78) ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की है।
दरअसल यह दंपत्ति सुप्रीम कोर्ट के सशर्त इच्छामृत्यु के फ़ैसले को लेकर नाख़ुश है।
बता दें कि नारायण लावटे और उनकी पत्नी इरावती की कोई संतान नहीं है और उन्हें कोई गंभीर बीमारी भी नहीं है। लेकिन अब उन्हें लगता है कि वह अपनी देखभाल खुद करने में सक्षम नहीं हैं और समाज के लिए उनकी कोई उपयोगिता नहीं है।
इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति को इच्छामृत्यु की आज्ञा के लिए पत्र लिखा था कि वह 31 मार्च 2018 तक जवाब का इंतजार करेंगे। अगर उनके लेटर का कोई जवाब नहीं मिलता है तो वह आत्महत्या कर लेंगे।
इच्छामृत्यु को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रखी है यह शर्त
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि किसी शख़्स को ये अधिकार दिया जा सकता है, जिसमे वो ये वसीयत कर सके कि लाइलाज़ बीमारी से पीड़ित होने पर/ कोमा जैसी स्थिति में पहुचंने पर उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम के जरिये जबरन जिंदा ना रखा जाए।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिविंग विल को परिवार के सदस्यों और डॉक्टर्स की एक टीम, जिसका मानना हो कि इलाज संभव नहीं है, तभी उसकी अनुमति से ही लिखा जा सकता है।
अरुणा शानबाग को इच्छामृत्यु की नहीं मिली थी इजाज़त
इससे पहले अरुणा शानबाग को इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं मिल पाई थी। 42 साल तक कोमा में रहने के बाद 18 मई 2015 को अरुणा शानबाग की मौत हो गई थी।
अरुणा को इच्छामृत्यु की इजाजत इसलिए नहीं मिली थी, क्योंकि वह पूरी कोमा में न होते हुए दवाई और भोजन ले रही थीं।
कौन थीं अरुणा शानबाग?
मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल में अरुणा शानबाग नर्स थीं। 27 नवंबर 1973 को वह ड्यूटी खत्म करने के बाद बेसमेंट में कपड़े बदलने गई थीं। वहां वॉर्ड ब्वॉय सोहनलाल पहले से ही छिपा बैठा था। उसने अरुणा के गले में चेन लपेटी (कुत्ते के गले में बांधने वाली चेन) और दबाने लगा।
अरुणा ने खूब ताकत लगाई, लेकिन गले की नसें दबने से वह बेहोश हो गईं। इसके बाद वह रेप का शिकार हुईं। अरुणा कोमा में चली गईं और कभी ठीक नहीं हो सकीं। जर्नलिस्ट पिंकी वीरानी ने उनकी इच्छा या दया मृत्यु के लिए मांग की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2011 को उनकी याचिका ठुकरा दी।
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Source : News Nation Bureau