जस्टिस कुरियन जोसेफ पादरी बनना चाहते थे पर नियति को कुछ और ही मंजूर था, इसलिए उन्होंने भी अपना रास्ता बदल दिया. वो जज बने और सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचे. यहां करीब साढ़े पांच साल के कार्यकाल में उनको एक बेहतरीन जज के तौर पर याद किया जाएगा. जस्टिस जोसेफ गुरुवार को रिटायर हुए और शुक्रवार शाम को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को चाय पर बुलाया. जस्टिस कुरियन जोसेफ पत्रकारों से मुखातिब हुए तो सभी सवालों के जवाब बड़ी बेबाकी से दिए.
सबसे पहला सवाल उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर ही किया गया जिसमें उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर प्रणाली पर सवाल खड़े किए थे. जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या उन्हें आज उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का कोई खेद है तो जस्टिस कुरियन जोसेफ का जवाब था कि ये कैसा अजीब सवाल है, मुझे खेद नहीं है, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का फैसला सोच समझकर लिया गया और ऐसा इसलिए किया क्योंकि कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था के हित के लिए ऐसा किया.
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जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद क्या अब सब कुछ ठीक हो गया तो जस्टिस जोसेफ का कहना था कि अभी सब कुछ ठीक नहीं हुआ, उसमे वक्त लगेगा. लेकिन बदलाव की शुरुआत हो गई है, ये पुराने चीफ जस्टिस के रहते ही हो गई थी. हमारे राष्ट्र को सम्बंधित करने से ट्रांसपरेंसी की शुरुआत हुई है.
लेकिन सवाल अभी प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर कहां थमने वाले थे. जस्टिस कोरियन से फिर पूछा गया कि आपने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बजाए, फूल कोर्ट मीटिंग क्यों नहीं बुलाई? जस्टिस जोसेफ का जवाब था, ‘जज खुद से फुल कोर्ट मीटिंग नहीं करवा सकते, ये फैसला चीफ जस्टिस ही ले सकता है. उस वक्त उनसे ( तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से) कई बार इसके लिए आग्रह भी किया गया था.’
लेकिन अब सवाल ये था कि जिसको लेकर कयास लगते रहे है, जस्टिस जोसेफ से जब पूछा गया कि क्या वो न्यायपालिका पर सरकार का दबाव महसूस करते है तो उनका कहना था कि जहां तक एक जज के अपने न्यायिक अधिकार के इस्तेमाल की बात है, उस पर सरकार के दबाव को उन्होंने महसूस नहीं किया कभी लगा कि किसी फैसले को अपने मनमाफिक कराने के लिए सरकार ने दबाव डाला हो, पर हां, कई बार जजों की नियुक्ति , ट्रांसफर से जुड़ी फाइलों को क्लियर करने में सरकार की ओर देरी होती है. तो फैसलों की डिलवरी में नही, लेकिन प्रशासनिक लेवल पर अप्रत्यक्ष तौर पर दखल रहता ही है.
सवाल MOP यानी जजों की नियुक्ति के मसौदे को लेकर भी पूछा गया. जस्टिस जोसेफ का जवाब था कि मुझे नहीं मालूम क्या मतभेद है. सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम के मुताबिक उनकी ओर से MOP फाइनल है. वहीं सरकार कहती है कि अभी फाइनल नहीं हुआ है. लेकिन कॉलेजियम ड्राफ्ट MOP के हिसाब से काम कर रहा है.
सवाल सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के राजनीतिकरण को लेकर भी पूछा गया, खासतौर पर अयोध्या, सबरीमाला मामले की सुनवाई को लेकर केंद्रीय मंत्री के बयानों पर पत्रकारों ने जस्टिस जोसेफ की प्रतिक्रिया मांगी. जस्टिस जोसेफ ने बड़ी चतुराई से बिना किसी राजनीतिक व्यक्ति पर टिप्पणी करते हुए अपनी बात भी कह दी. उन्होंने कहा कि एक बार जब सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला सुनाता है तो वो लॉ ऑफ द लैंड बन जाता है. अगर राजनीतिक दलों को उस फैसले के अमल को लेकर कोई दिक्कत है तो वो क्लियरिफिकेशनके लिए कोर्ट का रुख सकते है.
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पत्रकारों के जवाब में जस्टिस कुरियन ने माना कि बिना मतलब के मुद्दों पर जनहित याचिका दायर होने और उन पर सुनवाई से कोर्ट का कीमती वक़्त बर्बाद होता है. कोर्ट को केवल ऐसे जनहित याचिकाओं पर ध्यान देना चाहिए जो आम लोगों के हितों से जुड़े हों.
अंतिम सवाल रिटायरमेंट के बाद जजों को दिए जाने वाले पदों को लेकर भी था. ख़ुद जस्टिस जोसेफ ये साफ कर चुके है कि वो कोई पद नही लेंगे. लेकिन उन्होंने एक अहम बात कही. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि जबतक सरकार को लगता है कि रिटायरमेंट के बाद जजों को कोई पद देकर उनपर 'कृपा' कर रही है जजों को ऐसे पद को स्वीकार नहीं करना चाहिए. लेकिन अगर पूरे सम्मान के साथ, सरकार जजों से आग्रह करती है, तो फिर पद को स्वीकारने में कोई खामी नहीं है.
Source : Arvind Singh