सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर देश में हो रही हिंसा के खिलाफ आज (मंगलवार) को एतिहासिक फैसला सुनाते हुए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लोकतंत्र में भीड़तंत्र के लिए कोई जगह नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से इस मामले को लेकर कानून बनाने और सरकारों को संविधान के दायरे में रहकर काम करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर 23 दिशानिर्देश जारी किए है जिसमें इस तरह की घटनाओं को होने से रोकने और ऐसा करने वाले लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने के प्रावधान का जिक्र है।
कोर्ट की ओर से जारी किए गए दिशा-निर्देश:
- अदालत की ओर से जारी दिशानिर्देश के अनुसार हर जिले में कम से कम SP रैंक के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त किया जाए।
- हर जिले में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन हो, जो इस तरह के मामलो पर रोक लगाए और उन लोगो पर नजर रखे जो भीड़ को हिंसा के लिए उकसाते है।
- राज्य सरकार ऐसे इलाको की पहचान कर जहां भीड़ के जरिये हिंसा की घटनाएं सामने आई है।
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- जिले के नोडल ऑफिसर लोकल इंटेलीजेंस यूनिट और सम्बंधित जेल के थानों के SHO से कम से कम महीने में एक बार बैठक करे।
- राज्य के डीजीपी / होम सेक्रेटरी कम से कम चार महीने में एक बार नोडल अफसर के साथ मीटिंग करे।
- केंद्र के साथ राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी होगी कि वो सोशल मीडिया पर मौजूद भड़काऊ, गैर ज़िम्मेदार संदेशों और वीडियो को फैलने से रोके जो भीड़ को हिंसा के लिए उकसाते है।
- इस तरह के संदेश फैलाने वाले लोगों पर IPC की धारा 153 A के तहत FIR दर्ज की जाए।
- राज्य सरकार एक महीने के अंदर पीड़तों के लिए मुआवजा स्कीम बनाए।
- फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में इस तरह के मामलों की सुनवाई हो, कोर्ट 6 महीने में केस का निपटारा करे और दोषियों को इस मामले में अधिकतम सजा का प्रावधान हो।
- लापरवाही के लिए ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ 6 महीने के अंदर विभागीय कार्रवाई हो।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि हम ऐसे मामलों में संसद से सिफारिश करते है कि इस तरह के केसों के लिए अधिकतम सजा के प्रावधान वाला कानून बनाये। ऐसा कानून उन लोगों के अंदर डर पैदा करेगा जो इस तरह की हिंसा में शामिल होते है।
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Source : News Nation Bureau