कर्नाटक में बागी विधायकों के इस्तीफे को लेकर स्पीकर की भूमिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत पर बल दिया. मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी. स्पीकर अभी विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने को लेकर कोई फैसला नहीं ले पाएंगे. आदेश पढ़ते हुए चीफ जुस्टिस ने कहा, इस मामले में आर्टिकल 190, 361 को लेकर चर्चा हुई. एक बड़ा सवाल कोर्ट के सामने ये था कि क्या कोर्ट स्पीकर को ऐसा आदेश दे सकता है? हमे लगता है- इस पर विस्तार से सुनवाई की ज़रूरत है? सुप्रीम कोर्ट ने अभी यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया. यानी स्पीकर अभी विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने पर फैसला नहीं ले सकेंगे. मंगलवार को ही कोर्ट इस मामले से जुड़े बड़े सांविधानिक सवाल पर विचार करेगा.
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कर्नाटक के सियासी संग्राम को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. बागी विधायकों की ओर से मुकुल रोहतगी ने दलीलें रखीं. रोहतगी ने कहा, स्पीकर का रवैया दोहरा है. एक ओर वो कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें निर्देश देने वाला कौन होता है, दूसरी ओर वो इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए समय न होने का हवाला दे रहे हैं. हक़ीक़त तो यह है कि इस्तीफे पर फैसला लेने का विधानसभा में स्पीकर के अधिकार से कोई लेना-देना नहीं है. रोहतगी ने कहा, स्पीकर ने अभी तक इस्तीफे पर फैसला नहीं लिया है. उनका मकसद इस्तीफे को पेंडिंग रखकर विधायको को अयोग्य करार देने का है, ताकि ऐसी सूरत में इस्तीफा निष्प्रभावी हो जाए. मुकुल रोहतगी ने यह भी कहा कि अगर स्पीकर इस्तीफे पर फैसला नहीं लेते तो यह सीधे-सीधे अदालत की अवमानना है.
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मुकुल रोहतगी के बाद विधानसभा के स्पीकर की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखते हुए कहा, विधायकों के इस्तीफे देने का मकसद अयोग्य करार दिए जाने की कार्रवाई से बचने का है. 1974 में संविधान संसोधन के जरिये ये साफ कर दिया गया था कि इस्तीफे यूं ही स्वीकार नहीं किये जा सकते. कोई फैसला लेने से पहले ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि वो genuine है.
कोर्ट ने इस पर सिंघवी से पूछा कि क्या आप ये कहना चाहते हैं कि ये संविधानिक बाध्यता है कि इस्तीफे पर कोई फैसला लेने से पहले , अयोग्य करार दिए जाने वाली मांग पर फैसला लेना जरूरी है. सिंघवी ने इस पर सहमति जताई.
सिंघवी ने यह भी कहा, दो विधायकों ने तब इस्तीफा दिया जब अयोग्य करार दिए जाने की प्रकिया शुरू हो गई. आठ विधायकों ने इसे शुरू होने से पहले इस्तीफ़े सौंपे, पर स्पीकर के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं हुए.
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सिंघवी ने कहा, अगर कल को कोई दूसरी सरकार बनती है, तो इन दसों विधायकों को मंत्री पद के लिए आमंत्रित किया जाएगा. सिंघवी ने कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि स्पीकर को इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए किसी particular manner या फिर एक समयसीमा में लेने के लिए नहीं कहा जा सकता.
चीफ जस्टिस ने सिंघवी से सवाल पूछा, क्या स्पीकर इस कोर्ट की अथॉरिटी को चुनौती दे रहे हैं? क्या वो ये कहना चाहते हैं कि कोर्ट को इस मामले से दूर रहना चाहिए? इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने जवाब देते हुए कहा- नहीं, उनका आशय ऐसा नहीं है. दरअसल, मेरे (स्पीकर) के अधिकारों की रक्षा करना भी कोर्ट का दायित्व है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा, विधायकों की यह याचिका आर्टिकल 32 के तहत सुनी नहीं जा सकती. राजीव धवन ने कहा, इस मामले में किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के दखल की मांग विधायकों की ओर से की गई है. मसलन उनका कहना है कि स्पीकर बदनीयती से काम कर रहे हैं. सरकार बहुमत खो चुकी है. घोटालो में फंसी है. क्या इन आधार पर आर्टिकल 32 के तहत कोर्ट के दखल का औचित्य बनता है?
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धवन ने यह भी कहा, चूंकि विधायक ये दलील दे रहे हैं कि सरकार बहुमत खो चुकी है. लिहाजा कोर्ट को किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले उनके पक्ष को भी सुनना चाहिए. यह स्पीकर का दायित्व है कि वो ये सुनिश्चित करे कि इस्तीफे genuine हैं या नहीं. राजीव धवन ने कहा, यह राजनीति से प्रेरित याचिका है. कोर्ट को बेवजह राजनीति में घसीटा गया है. स्पीकर ने खुद साफ किया है कि वो विधायको के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य करार दिए जाने की मांग पर जल्द से जल्द फैसला लेंगे. इसमे कोर्ट के आदेश की कोई ज़रूरत नहीं है.