उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राफेल सौदे के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी गलत तरीके से शीर्ष अदालत के हवाले से कहने पर फटकार लगाई और उन्हें भविष्य में अधिक सावधानी बरतने की नसीहत दी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि राहुल गांधी ने इसकी पुष्टि नही की और इस बारे में बार बार बयान दिये जैसे शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोपों को कोई मंजूरी दे दी थी. पीठ ने कहा कि यह ‘सच्चाई से कोसों दूर था’ और ‘राजनीतिक परिदृश्य’ में इस तरह का महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले व्यक्तियों को और अधिक सावधान रहना चाहिए.
पीठ ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिये भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर अपने फैसले में यह टिप्पणियां कीं. पीठ ने कहा कि गलती स्वीकार करके बिना शर्त क्षमा याचना करने की बजाये कांग्रेस नेता द्वारा 20 पेज के हलफनामे के साथ तमाम दस्तावेल संलग्न करने से मामला और उलझ गया था. बहरहाल, न्यायालय ने इस मामले में राहुल गांधी द्वारा दायर अतिरिक्त हलफनामे को ध्यान में रखते हुये उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी. अतिरिक्त हलफनामे में राहुल गांधी ने बिना शर्त क्षमा याचना करते हुये कहा कि ऐसा पूरी तरह बगैर किसी मंशा के गलती से हुआ था. न्यायमूर्ति कौल, जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश और अपनी ओर से फैसला लिखा, ने कहा, ‘‘हमें यह इंगित करना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में पारित आदेश की बगैर पुष्टि या अवलोकन के ही अवमाननाकर्ता (गांधी) ने यह बयान देना उचित समझ लिया मानो न्यायालय ने प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके आरोपों पर मुहर लगा दी है, जो सच्चाई से कोसों दूर था.’’
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शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह एक वाक्य या अचानक की गयी टिप्पणी नहीं थी लेकिन अलग अलग तरीके से यही कहने के लिये बार-बार बयान दिये गये. इसमें संदेह नहीं कि अवमाननाकर्ता को और अधिक सावधान रहना चाहिए था.’ न्यायमूर्ति जोसफ फैसले से सहमति व्यक्त की लेकिन अलग से फैसला लिखा. उन्होंने न्यायमूर्ति कौल के दृष्टिकोण से सहमति तलाई. पीठ ने राहुल गांधी के पांच मई के अतिरिक्त हलफनामे, जिसमें उन्होंने बिना शर्त क्षमा याचना की थी, का जिक्र करते हुये कहा कि उनके अधिवक्ता को बहस के दौरान यह सदबुद्धि आयी और इसके बाद एक हलफनामा दाखिल किया गया जिसमें कहा कि वह शीर्ष अदालत का सर्वोच्च सम्मान करते हैं और उनकी मंशा कभी न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने की नहीं थी.
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पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि राजनीतिक परिदृश्य में इतने महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों को अधिक सावधान रहना चाहिए क्योंकि इस पर विचार करना राजनीतिक व्यक्ति का काम है कि उनके प्रचार का तरीका क्या होना चाहिए.’’ गौरतलब है कि राफेल मामले में न्यायालय के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के समर्थन में चुनिन्दा दस्तावेज की स्वीकार्यता पर केन्द्र की प्रारंभिक आपत्तियां अस्वीकार करने के शीर्ष अदालत के फैसले के बाद दस अप्रैल को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ये टिप्पणी की थी. गांधी, जो उस समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे, ने पीठ से कहा था कि उन्होंने अपनी टिप्पणियों को शीष अदालत की बताने की गलती के लिये पहले ही बिना शर्त माफी मांग ली है. राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा था कि कांग्रेस नेता ने शीर्ष अदालत के मुंह में गलत तरीके से यह टिप्पणी डालने के लिये खेद व्यक्त कर दिया है.
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भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि गांधी की क्षमा याचना अस्वीकार की जानी चाहिए और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए. रोहतगी ने यह भी दलील दी थी कि न्यायालय को राहुल गांधी को अपनी टिप्पणियों के लिये सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिये कहना चाहिए. राहुल गांधी ने आठ मई को राफेल फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ की टिप्पणी शीर्ष अदालत के हवाले से कहने के लिये पीठ से बिना शर्त माफी मांग ली थी. न्यायालय ने राहुल गांधी को इस मामले में उनके पहले के हलफनामे के लिये 30 अप्रैल को फटकार लगायी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि उन्होंने सीधे सीधे इन टिप्पणियों के लिये अपनी गलती नही मानी थी. इससे पहले, 15 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि राफेल मामले में उसके निर्णय में ऐसा कोई अवसर नहीं था कि वह ‘चौकीदार नरेन्द्र मोदी चोर है’ जैसी अवमाननाकारक टिप्पणी का उल्लेख करे जैसा कि गांधी ने उसके हवाले से कहा है.
राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, पीएम मोदी पर ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी पर मामला बंद
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह एक वाक्य या अचानक की गयी टिप्पणी नहीं थी लेकिन अलग अलग तरीके से यही कहने के लिये बार-बार बयान दिये गये.
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उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राफेल सौदे के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी गलत तरीके से शीर्ष अदालत के हवाले से कहने पर फटकार लगाई और उन्हें भविष्य में अधिक सावधानी बरतने की नसीहत दी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि राहुल गांधी ने इसकी पुष्टि नही की और इस बारे में बार बार बयान दिये जैसे शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोपों को कोई मंजूरी दे दी थी. पीठ ने कहा कि यह ‘सच्चाई से कोसों दूर था’ और ‘राजनीतिक परिदृश्य’ में इस तरह का महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले व्यक्तियों को और अधिक सावधान रहना चाहिए.
पीठ ने कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिये भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर अपने फैसले में यह टिप्पणियां कीं. पीठ ने कहा कि गलती स्वीकार करके बिना शर्त क्षमा याचना करने की बजाये कांग्रेस नेता द्वारा 20 पेज के हलफनामे के साथ तमाम दस्तावेल संलग्न करने से मामला और उलझ गया था. बहरहाल, न्यायालय ने इस मामले में राहुल गांधी द्वारा दायर अतिरिक्त हलफनामे को ध्यान में रखते हुये उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी. अतिरिक्त हलफनामे में राहुल गांधी ने बिना शर्त क्षमा याचना करते हुये कहा कि ऐसा पूरी तरह बगैर किसी मंशा के गलती से हुआ था. न्यायमूर्ति कौल, जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश और अपनी ओर से फैसला लिखा, ने कहा, ‘‘हमें यह इंगित करना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में पारित आदेश की बगैर पुष्टि या अवलोकन के ही अवमाननाकर्ता (गांधी) ने यह बयान देना उचित समझ लिया मानो न्यायालय ने प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके आरोपों पर मुहर लगा दी है, जो सच्चाई से कोसों दूर था.’’
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शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह एक वाक्य या अचानक की गयी टिप्पणी नहीं थी लेकिन अलग अलग तरीके से यही कहने के लिये बार-बार बयान दिये गये. इसमें संदेह नहीं कि अवमाननाकर्ता को और अधिक सावधान रहना चाहिए था.’ न्यायमूर्ति जोसफ फैसले से सहमति व्यक्त की लेकिन अलग से फैसला लिखा. उन्होंने न्यायमूर्ति कौल के दृष्टिकोण से सहमति तलाई. पीठ ने राहुल गांधी के पांच मई के अतिरिक्त हलफनामे, जिसमें उन्होंने बिना शर्त क्षमा याचना की थी, का जिक्र करते हुये कहा कि उनके अधिवक्ता को बहस के दौरान यह सदबुद्धि आयी और इसके बाद एक हलफनामा दाखिल किया गया जिसमें कहा कि वह शीर्ष अदालत का सर्वोच्च सम्मान करते हैं और उनकी मंशा कभी न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने की नहीं थी.
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पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि राजनीतिक परिदृश्य में इतने महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों को अधिक सावधान रहना चाहिए क्योंकि इस पर विचार करना राजनीतिक व्यक्ति का काम है कि उनके प्रचार का तरीका क्या होना चाहिए.’’ गौरतलब है कि राफेल मामले में न्यायालय के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के समर्थन में चुनिन्दा दस्तावेज की स्वीकार्यता पर केन्द्र की प्रारंभिक आपत्तियां अस्वीकार करने के शीर्ष अदालत के फैसले के बाद दस अप्रैल को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ये टिप्पणी की थी. गांधी, जो उस समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे, ने पीठ से कहा था कि उन्होंने अपनी टिप्पणियों को शीष अदालत की बताने की गलती के लिये पहले ही बिना शर्त माफी मांग ली है. राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा था कि कांग्रेस नेता ने शीर्ष अदालत के मुंह में गलत तरीके से यह टिप्पणी डालने के लिये खेद व्यक्त कर दिया है.
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भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि गांधी की क्षमा याचना अस्वीकार की जानी चाहिए और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए. रोहतगी ने यह भी दलील दी थी कि न्यायालय को राहुल गांधी को अपनी टिप्पणियों के लिये सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिये कहना चाहिए. राहुल गांधी ने आठ मई को राफेल फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ की टिप्पणी शीर्ष अदालत के हवाले से कहने के लिये पीठ से बिना शर्त माफी मांग ली थी. न्यायालय ने राहुल गांधी को इस मामले में उनके पहले के हलफनामे के लिये 30 अप्रैल को फटकार लगायी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि उन्होंने सीधे सीधे इन टिप्पणियों के लिये अपनी गलती नही मानी थी. इससे पहले, 15 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि राफेल मामले में उसके निर्णय में ऐसा कोई अवसर नहीं था कि वह ‘चौकीदार नरेन्द्र मोदी चोर है’ जैसी अवमाननाकारक टिप्पणी का उल्लेख करे जैसा कि गांधी ने उसके हवाले से कहा है.