सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी के भुगतान को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि श्रमिकों का वेतन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरी कर रहे ग्रुप 'डी' के कर्मचारी को मिलने वाले वेतन के बराबर होना चाहिए.
याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने उनसे संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने के लिए कहा. जस्टिस कौल ने कहा, 'आप अधिकारी के पास जा सकते हैं' जिस पर अग्निवेश ने कहा कि 'अधिकारी अपराधी हैं.'
अदालत ने पूछा, 'आप सातवें वेतन आयोग से जुड़ी न्यूनतम मजदूरी कैसे मांग सकते हैं?', अग्निवेश ने कहा, 'यह 1992 में शीर्ष अदालत की सिफारिश है.' बाद में अग्निवेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले ने न्यूनतम मजदूरी को संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मौलिक अधिकारों में शामिल कर दिया है.
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-23 के तहत अनिवार्य है कि कोई भी व्यक्ति न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन मिलने पर काम न करे. अग्निवेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में अनुच्छेद-141 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानूनी है.
याचिकाकर्ता ने जीवन स्तर और संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान आदि देशों जैसे देशों में श्रमिकों की उपलब्ध क्रय शक्ति के अनुपात में घंटे के आधार पर न्यूनतम मजदूरी तय करने की मांग की थी.
और पढ़ें : UN में भारत की बड़ी जीत, 3 साल के लिए चुना गया मानवाधिकार परिषद का सदस्य
बाल मजदूरी को प्रतिबंधित करने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि केंद्र के ग्रुप 'डी' कर्मचारियों के बराबर राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1992 में अपने फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप होगा.
याचिकाकर्ता ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी का भुगतान संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार बनाए रखेगा.
Source : IANS