सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा तीन तलाक के खिलाफ लाए गए अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने वकील रीपक कंसल की याचिका को खारिज कर दिया. केंद्र सरकार ने 19 फरवरी को तीसरी बार तीन तलाक पर अध्यादेश लेकर आई थी. तीन तलाक विधेयक संसद के शीतकालीन और बजट सत्र में राज्यसभा से पारित नहीं हो पाया था.
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की बेंच ने याचिका को स्वीकार करने से इंकार कर दिया.
गौरतलब है कि पिछले 1 साल में यह तीसरी बार है जब पिछले महीने मोदी सरकार अध्यादेश लेकर आई है. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 (तीन तलाक विधेयक) लोकसभा में पारित होने के बाद संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में लंबित है.
3 जून को मौजूदा लोकसभा के भंग होने के बाद यह विधेयक खत्म हो जाएगा. तीन तलाक बिल में तत्काल तीन तलाक या तलाक-ए-इबादत को दंडनीय अपराध ठहराया गया है और इसके अंतर्गत जुर्माने के साथ 3 वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान है.
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सरकार का कहना है कि अध्यादेश की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे असंवैधानिक घोषित करने के बावजूद तीन तलाक का दिया जाना लगातार जारी है. अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के मत से ऐतिहासिक फैसला देते हुए तीन तलाक की पुरानी परंपरा को खत्म करने का आदेश दिया था.
Source : News Nation Bureau