RafaleDeal पर बुधवार को मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. राफेल डील की जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाए दायर की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की और बुधवार को इस पर मैराथन सुनवाई हुई. सुनवाई दोपहर बाद दो बजे से पहले और बाद में दो भागों में हुई. इस दौरान कोर्ट में Indian Air Force के आला अफसर भी शामिल हुए. उनसे भी कोर्ट ने सवाल पूछे.
सरकार ने स्वीकार किया कि फ्रांस की सरकार ने सौदे का समर्थन करने की कोई स्वायत्त गारंटी नहीं दी है. अदालत ने विमान की कीमत के मसले को लेकर याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए विवाद का महान्यायवादी के. के. वेणुगोपाल को तब तक जवाब नहीं देने को कहा जब तक अदालत इसकी जांच करने का फैसला नहीं करती है.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की पीठ ने कहा, 'कीमत पर चर्चा तभी होगी जब हम फैसला करेंगे.' महान्यायवादी ने राफेल सौदे की न्यायिक समीक्षा का भी विरोध किया.
उन्होंने कहा कि अगर हथियार और विमान की कीमतें सार्वजनिक की जाएंगी तो दुश्मनों को राफेल विमान में लगे हथियारों का पता चल जाएगा.
मामले में तीन घंटे तक चली सुनवाई के दौरान वेणु गोपाल ने पीठ को बताया, 'हालांकि फ्रांस (सरकार) की ओर से कोई स्वायत्त गारंटी नहीं दी गई है, लेकिन एक प्रकार का विधिक आश्वासन (लेटर ऑफ कंफर्ट) दिया गया है.'
अदालत की निगरानी में फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन के साथ राफेल लड़ाकू जेट विमान सौदे की जांच की मांग वाली चार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुबह में याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुना गया. इस दौरान याचिकाकर्ता एमएल शर्मा, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और कॉमन कॉज के प्रशांत भूषण का पक्ष सुना गया. एमएल शर्मा ने Rafale Deal में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए इसे रद करने की मांग की.
प्रशांत भूषण ने कहा, सरकार पहले भी कई बार राफेल का मूल्य बता चुकी है पर अब वह गोपनीयता का हवाला दे रही है, जो निहायत ही बकवास है.
भूषण ने कहा, सरकार का कहना है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में उनकी कोई भूमिका नहीं है, जबकि नियम और प्रक्रिया यह है कि आफसेट पार्टनर के नाम को रक्षा मंत्री की मंजूरी जरूरी होती है.
उन्होंने कहा, रिलायंस को रक्षा क्षेत्र या लड़ाकू विमान बनाने में कोई अनुभव नहीं है. सरकार ऐसा नहीं कह सकती कि ऑफसेट पार्टनर के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. ऐसा करना प्रक्रिया का उल्लंघन करना है. यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में कहा- यह गम्भीर फ्रॉड का मामला है. सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल डील की घोषणा अप्रैल 2015 में की, जबकि बातचीत मई 2015 में शुरू हुई. सवाल उठाए गए कि अप्रैल 2015 में कैसे भारत और फ्रांस ने Joint Statement जारी कर दिया, जबकि CCS ने सितबर 2016 में डील को मंजूरी दी.
संजय सिंह की ओर से पेश वकील ने कहा- सरकार दो बार राफेल की कीमत की जानकारी दे चुकी है. राफेल की कीमत 670 करोड़ बताया गया था. सरकार को अब मूल्य बताने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए. वह मूल्य क्यों नहीं बता रही है.
संजय सिंह के वकील ने कहा कि सरकार की ओर पेश किए दस्तावेजों से इस बात का जवाब नहीं मिलता कि क्या पीएम द्वारा राफेल डील की घोषणा से पहले DEC (Defence Acquisition Council) या CEC यानि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी से मंजूरी ली गई थी या नहीं.
याचिकाएं प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा व अन्य द्वारा दायर की गई हैं.
वायुसेना के अफसरों से SC ने कहा, लौट जाइए
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगाई ने सुनवाई के दौरान वायुसेना के अफसरों को तलब किया. इस पर एयर मार्शल और एयर वाइस मार्शल कोर्ट में पेश हुए. उनका पक्ष सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘आपलोग अब लौट जाइए. यहां कोर्ट में दूसरे तरह की लड़ाई चल रही है. आपलोग असली वार रूम में जा सकते हैं.’
Source : News Nation Bureau