सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पांड्या की हत्या मामले में कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील शांति भूषण और सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता के जिरह के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. भूषण ने कोर्ट में कहा कि हरेन पांड्या की हत्या मामले में पिछले कुछ दिनों में कई नए तथ्य सामने आए हैं जिसकी जांच होने की जरूरत है. वहीं सॉलीसिटर जनरल ने आरोप लगाया कि इस जनहित याचिका का उपयोग राजनीतिक हित साधने के लिए हो रहा है.
गुजरात में तत्कालीन नरेन्द्र मोदी की सरकार में गृह मंत्री रहे हरेन पांड्या की हत्या अहमदाबाद के लॉ गार्डन इलाके में 26 मार्च 2003 को हत्या कर दी गई थी. इस मामले के 16 साल बीत चुके हैं. सीपीआईएल द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया था कि इस मामले में नए सिरे से तहकीकात की जरूरत है क्योंकि हाल के दिनों में कुछ 'चौंकानेवाले तथ्य' सामने आए जिसे देखे जाने की जरूरत है.
याचिका में कहा गया था, 'हाल में जो जानकारियां सामने आई हैं उसमें पांड्या को मारने की साजिश में डी जी वंजारा के साथ अन्य आईपीएस ऑफिसर्स की संलिप्तता की संभावनाएं हैं. जो साफ दिखाता है कि इसमें पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ राजनीतिक व्यक्तित्व भी शामिल थे. जांच में 'ढिलाई' साफ दिखाती है कि इससे प्रशासन में ताकतवर लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया.'
हाल ही में सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में गवाह का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया था, 'गवाह ने यह बयान दिया था कि सोहराबुद्दीन ने उससे कहा था कि डीजी वंजारा ने हरेन पांड्या की हत्या करने की सुपारी दी थी.'
याचिका के अनुसार, 'उसने (गवाह) खुलासा किया था कि सोहराबुद्दीन के साथी तुलसीराम प्रजापति और दो अन्य ने सुपारी के तहत पांड्या की हत्या की थी. इस दौरान उसने कहा था कि वह यह जानकारी सीबीआई को 2010 में ही दे चुका था.'
याचिका में पूर्व में जांच करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी पूछताछ करने की मांग की है और जांच को प्रभावित करने के लिए इन अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है. सन 2007 में विशेष आंतकी गतिविधि रोकथाम (पीओटीए) कोर्ट ने इस मामले में सभी 12 आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कैद की सजा सुनाई थी.
लेकिन 29 अगस्त 2011 को गुजरात हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने जांच के लिए सीबीआई को फटकार लगाई थी और कहा था कि यह जांच 'दोषपूर्ण' और 'बंद आंखों वाली' है. कोर्ट ने सभी दोषियों को इस मामले में बरी कर दिया था. बाद में सीबीआई ने दोषियों को बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
Source : News Nation Bureau