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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पारसी टावर ऑफ साइलेंस पर नहीं कर सकते अंतिम संस्कार

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पारसी धर्म के रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार की इजाजत देने से इनकार कर दिया है.

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Pradeep Singh
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Tower of silence

टावर ऑफ साइलेंस( Photo Credit : फाइल फोटो)

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सुप्रीम कोर्ट ने टावर ऑफ साइलेंस (Tower of Silence) पर पारसी रीति-रिवास से अंतिम संस्कार करने पर फिलहाल रोक लगा दी है. एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पारसी धर्म के रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार की इजाजत देने से इनकार कर दिया है. पारसी समुदाय के लोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि उन्हें कोरोना से जान गंवाने वाले परिजनों का अंतिम संस्कार पारसी धर्म के तरीके से किए जाने की छूट मिले. पारसी धर्म में शवों को दफनाने या दाह संस्कार करने पर रोक है. केंद्र ने अंतिम संस्कार के लिए जारी SoP को बदलने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि COVID-19 संक्रमण से मौत होने पर अंतिम संस्कार का काम पेशेवर द्वारा किया जाता है. मृत शरीर को इस तरह खुला नहीं छोड़ा जा सकता है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि कोविड से हुई मौत के बाद शवों को सही तरीके से दफनाना या जलाना जरूरी है. ऐसा ना किए जाने पर कोविड संक्रमित रोगियों के शव के पर्यावरण, मांसाहारी जानवरों और पक्षियों के संपर्क में आने की पूरी आशंका बनी रहती है. शव को दफन या दाह किए बिना खुले आसमान के नीचे (बिना ढके) खुला रखना कोविड पॉजेटिव रोगियों के शवों के निपटान का एक स्वीकार्य तरीका नहीं है.

क्या है टावर ऑफ साइलेंस

हिन्दू और सिख धर्म में शव का दाह-संस्कार किया जाता है, इस्लाम और ईसाई धर्म के लोग शव को दफनाते हैं, वहीं पारसी धर्म में शवों को आकाश के सुपुर्द किया जाता है यानी उन्हें 'टावर ऑफ साइलेंस' जिसे दखमा भी कहा जाता है, में ले जाकर छोड़ दिया जाता है. पिछले करीब तीन हजार वर्षों से पारसी धर्म के लोग दोखमेनाशिनी नाम से अंतिम संस्कार की परंपरा को निभाते आ रहे हैं. भारत में अधिकांशत: पारसी महाराष्ट्र के मुंबई शहर में ही रहते हैं, जो टावर ऑफ साइलेंस पर अपने संबंधियों के शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. टावर ऑफ साइलेंस एक तरह का गोलाकार ढांचा होता है जिसकी चोटी पर ले जाकर शव को रख दिया जाता है, फिर गिद्ध आकर उस शव को ग्रहण कर लेते हैं. परंपरावादी पारसी आज भी दोखमेनाशिनी के सिवा किसी भी अन्य तरीके को अपनाने से इनकार करते हैं.

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पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. उनका मानना है कि शरीर को जलाने से अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. पारसी शवों को दफनाते भी नहीं हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे पृथ्वी प्रदूषित हो जाती है और पारसी शवों को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे जल तत्व प्रदूषित होता है. परंपरावादी पारसियों का कहना है कि जो लोग शवों को जलाकर अंतिम संस्कार करना चाहते हैं, वो करें लेकिन धार्मिक नजरिए से यह पूरी तरह अमान्य और गलत है.

Supreme Court covid-19 Tower of Silence Parsis cannot perform last rites at Tower of Silence
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