देश में लाखों करोड़ के कर्ज में डूबे राज्य भी वोट के लिए रेवड़ी बांट रहे हैं, ये चलन बढ़ता जा रहा है, इस पर अगर तुरंत रोक न लगी तो भारत के हालात भी श्रीलंका जैसे बदहाल हो सकते हैं....ये दलील वोट के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाले राजनीतिक दल और प्रत्याशियों के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के चलते दी गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का गंभीर रुख नजर आया. इस मामले में पिछली सुनवाई पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस के बाद भी कोई ठोस जवाब नहीं मिला तो सुप्रीम कोर्ट ने वित्त आयोग से रिपोर्ट तलब की हैं. अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय द्वारा दाखिल याचिका में एक तथ्य है कि मुफ्त वादों के चलते कई राज्य 70 लाख करोड़ के कर्जे में हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट रूम में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की भी राय ली जिन्होंने इसे गंभीर और वित्त का मामला बताया. इस पर खंडपीठ ने वित्त आयोग से रिपोर्ट मांगी और अगले हफ्ते सुनवाई तय की. अगले हफ्ते तक केंद्र सरकार से भी अपना पक्ष रखने को कहा हैं. जवाब आने की बाद इस मामले में अगले हफ्ते सुनवाई होगी.
खुद मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमना ने कहा की ये बहुत ही संजीदा मसला है. ये वोटर को घूस देने जैसा है. जब मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार के वकील के एम नटराज से उनकी राय मांगी तो उन्होंने कहा की ये चुनाव आयोग को तय करना है. इसमें केंद्र सरकार का कई दखल नहीं है. लेकिन जस्टिस रमना ने इस बात पर नाराज़गी जताई और कहा की केंद्र सरकार इससे अपने आप को अलग नही कर सकती. अदालत ने फिर केंद्र सरकार को एक हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष साफ करने को कहा.
सिब्बल के मुताबिक वित्त आयोग एक निष्पक्ष एजेंसी है जो राज्यों को फंड देती है. ऐसे में वित्त आयोग राज्य सरकारों को फंड देने से पहले ये कह सकती है की आप को मुफ्त सुविधा देने की लिए फंड आवंटित नहीं किया जायेगा. मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार से इस बात पर भी जवाब दाखिल करने को कहा की वित्त आयोग की इसमें क्या भूमिका हो सकती है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा की हर राज्य पर लाखों करोड़ का कर्जा है.
जैसे पंजाब पर तीन लाख करोड़ , यूपी पर छह लाख करोड़ और पूरे देश पर 70 लाख करोड़ रूपया कर्ज है। ऐसे में अगर सरकार मुफ्त सुविधा देती रही है तो ये कर्ज और बढ़ जायेगा। अश्विनी उपाध्याय ने बताया की श्रीलंका में भी इसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई है. भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है.
Source : Avneesh Chaudhary