एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंस्यूमर फोरम के फैसले को पलटते हुए कहा है कि उपभोक्ता जवाब देने में देरी करे तो भी उसे इंसाफ मिलना चाहिए. इसी के साथ कोर्ट ने कंस्यूमर फोरम के उस फैसले को भी पलट दिया है कि जिसमें जवाब देने में देरी करने के चलते फोरम ने उपभोक्ता की याचिका खारिज कर दी थी.
क्या था पूरा मामला?
दरअसल याचिकाकर्ता उपभोक्ता ने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में फ्लैट बुक कराया था. लेकिन याचिकाकर्ता ने कंपनी पर कोताही बरतने के आरोप लगाते हुए कंस्यूमर फोरम में शिकायत दर्ज कराई. याचिका दाखिल होने के बाद कंपनी ने तो फोरम में अपना दबाव दाखिल कर दिया लेकिन उपभोक्ता ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए वक्त मांगा. फोरम ने 15 फरवर 2019 तक याचिकाकर्ता उपभोक्ता को वक्त दिया लेकिन जब 15 फरवरी तक भी उपभोक्तो ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया तो फोरम ने उसकी याचिका ये कहकर खारिज कर दी की याचिकाकर्ता 15 फरवरी तक अपना जवाब दाखिल नहीं कर सका, इससे ये जाहिर होता है याचिकाकर्ता के आरोपों में दम नहीं है. बाद में याचिकाकर्ता ने फोरम के इस फैसले को चुनौती दी. कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए फोरम का फैसला पलट दिया और याचिकाकर्ता की याचिका को बहाल कर दिया.
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क्या कहा कोर्ट ने?
इस मामले पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, फोरम की तरफ से ये याचिका तकनीति तौर पर खारिज की गई. फोरम के इस फैसले से संसद का वो मकसद पूरा नहीं होता जिसकी वजह से नेशनल कंस्यूमर फोरम का गठन किया गया था. पीठ ने कहा, कंस्यूमर प्रोट्क्शन एक्ट 1986 के तहत उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए संसद ने नेशनल कंस्यूमर फोरम का गठन किया था. लेकिन इस मामले में फोरम ने जो आदेश दिया उससे ये मकसद पूरा नहीं होता.
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कोर्ट ने कहा, फोरम को तकनीकि आधार पर फैसला लेने के बजाए फोरम के गठन के मकसद को ध्यान में रखान चाहिए था. अगर याचिकाकर्ता जवाब देने में देरी करे तो भी उसकी याचिका खारिज कर देना एक सख्त कदम होगा. फोरम को ये बात दिमाग में रखनी चाहिए की इंसाफ की हार न हो. सुप्रीम कोर्ट ने कंस्यूमर फोरम के फैसले को पलटते हुए याचिकाकर्ता की याचिका बहाल कर दी.