राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में आज सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस बोबड़े बोले, ये महज भूमि विवाद का मसला नहीं है. ये लोगों की भावनाओं से जुड़ा मसला है. हम इस फैसले के आने के बाद आने वाले रिजल्ट को लेकर सतर्क हैं. मध्यस्थता की नाकाम कोशिशों की दलीलों को लेकर जस्टिस बोबड़े बोले- हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर आगे तो फैसला ले सकते हैं. कोर्ट में एक वकील ने दलील थी कि मध्यस्थता को लेकर अगर सभी पक्ष राजी भी हो जाते हैं, तो भी जनता मेडिएशन के रिजल्ट को स्वीकार नहीं करेगी. निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. यूपी सरकार ने भी अवहवहारिक बताया, जबकि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है.
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जस्टिस बोबड़े बोले- यानी आप पहले से मानकर चल रहे हैं. मीडिएशन फेल ही होगा. ये पूर्वाग्रह होगा. ये आस्था, भावना का मसला है, लोगो के दिल और दिमाग से जुड़ा मसला है. जस्टिस बोबड़े ने कहा, एक बार मध्यस्थता शुरू हो जाएगी तो इसकी रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए.
जस्टिस बोबड़े ने कहा, सिर्फ एक व्यक्ति मध्यस्थता नहीं करेगा, इसके लिए पूरा पैनल होगा. मध्यस्थता का मतलब सहमति बनाना है. मध्यस्थता को गोपनीय रखा जाएगा. जस्टिस बोबड़े ने कहा, मध्यस्थता विफल होगी, यह जरूरी नहीं है.
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हिन्दू पक्षकारों की ओर से मेडिएशन की कोशिश पर ऐतराज को लेकर जस्टिस बोबड़े ने कहा, हम आपको यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमने भी इतिहास पढ़ा है, बाबर का आक्रमण या फिर जिसने भी विध्वंस किया हो, पर अब अतीत को तो नहीं बदला जा सकता है न. हां, वर्तमान हमारे हाथ में है.
जुस्टिस चंद्रचूड़ ने अहम सवाल करते हुए कहा, क्या करोड़ों लोगो को मीडिएशन के परिणाम से बाध्य कर पाना संभव होगा.
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश हुए राजीव धवन ने मीडिएशन को लेकर कोर्ट के सुझाव से सहमति जताई. कहा- बातचीत गोपनीय रहनी चाहिए. अगर सभी पक्ष इसके लिए राजी भी न हो तो भो कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है.
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सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद केस को कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थ के जरिए सुलझाने के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात के संकेत दिए थे. कोर्ट ने कहा था कि बेहतर होगा सभी पक्ष बातचीत के जरिए किसी हल तक पहुंचने के लिए कोशिशें करें. निर्मोही अखाड़ा ने इस पर सहमति जताई थी, लेकिन रामलला विराजमान कोर्ट के इस सुझाव से सहमत नहीं था. उनका कहना है कि ऐसी कोशिशें पहले भी विफल हो चुकी हैं. मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि अगर बातचीत गोपनीय रहे, तो कुछ हल निकल सकता है.
जानकार बताते हैं कि CPC की धारा 89 के तहत कोर्ट को ये अधिकार है कि वो किसी दीवानी मामले को मध्यस्थता के लिए भेज सकता है . इसके लिए ज़रूरी नहीं कि सभी पक्ष मध्यस्थता के लिए राजी ही हो, उनके बिना भी कोर्ट चाहे, तो मध्यस्थता का आदेश सकता है.
Source : Arvind Singh