सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि वह किसी जजों को हटाए जाने जैसे विषयों पर संसद से नोटिस जारी नहीं होने के बावजूद सांसदों द्वारा की जाने वाली बयानबाज़ी पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई करेगा
न्यायाधीश ए के सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए कोई जल्दी नहीं है और देखा गया है कि राज्यसभा के नियम भी सांसदों को बिना नोटिस के इस तरह के मामलों पर बयानबाजी करने पर रोक लगाते हैं।
बेंच ने कहा 'हमें कोई दिशानिर्देश बनाने की जरूरत नही है।' बेंच को केवल यह देखना है कि क्या संसद से बाहर इस तरह की बातचीत हो सकती है?
बेंच 'इन परस्यू ऑफ जस्टिस' नाम के एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमे मांग की गई थी कि संविधान के अनुच्छेद 124(4) और (5) तथा 217(1)(b) के तहत सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले सांसदों द्वारा बयानबाज़ी को लेकर दिशानिर्देश या नियम बनाये जाएं।ट
अनुच्छेद 124(4) और (5) उच्च न्यायपालिका में जजों को हटाए जाने से संबंधित है।
याचिका में कहा गया है कि सदन के बाहर इस तरह की बयानबाज़ी गलत है। लॉ कमीशन ने 2005 में में सिफारिश की थी कि इसे दंडनीय अपराध माना जाए लेकिन अब तक इस पर कानून नहीं बना है।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने नेताओं की बयानबाज़ी और मीडिया रिपोर्टिंग को परेशान करने वाला बताते हुए एटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी थी।
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Source : News Nation Bureau