सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को 10 % आरक्षण दिए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच सुनवाई करेगी. याचिकाकर्ता के मुताबिक, आर्थिक तौर पर आरक्षण असंवैधानिक है और ये कोर्ट द्वारा तय 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा का हनन करता है.
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अगड़ी जातियों (सामान्य वर्ग में आने वाले लोगों) को आर्थिक आधार पर नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. याचिका में संविधान (124वें) संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की मांग की गई. दिल्ली के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) यूथ फॉर इक्वलिटी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधन से संविधान की मूल संरचना का अतिक्रमण होता है. याचिकाकर्ता ने 1992 के इंदिरा साहनी मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक मानदंड संविधान के तहत आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.
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याचिका के अनुसार, संविधान संशोधन (124वें) पूर्ण रूप से संवैधानिक मानक का उल्लंघन करता है. इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों द्वारा कहा गया था कि आर्थिक मानदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है. ऐसा संशोधन दोषपूर्ण है और इसे अवैध ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि इसमें फैसले का खंडन किया गया है.
याचिकाकर्ता का तर्क है कि संशोधन से सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण के लिए तय की गई 50 फीसदी की ऊपरी सीमा का अतिक्रमण किया गया है. मौजूदा संशोधन के अनुसार, सामान्य श्रेणी के सिर्फ गरीबों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि जल्दबाजी में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित संविधान संशोधन लोकलुभावन कदम है, इसलिए इस पर तत्काल रोक लगा दी जाए क्योंकि इससे संविधान की मूल प्रकृति भंग होती है.
Source : Arvind Singh