राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को फैसला सुनाएगी. कोर्ट भारतीय वायु सेना के लिए फ्रांस से अरबों रुपये के राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते की न्यायालय की निगरानी में जांच के लिए दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को सुबह साढ़ें दस बजे तक फैसला सुनाएगा. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी.
इस डील (Rafel Deal) में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी. इसके बाद, एक अन्य अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था. इस सौदे को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की.
Supreme Court will tomorrow pronounce the judgment in #Rafale deal case pic.twitter.com/ho7anXqjBF
— ANI (@ANI) December 13, 2018
इस याचिका में अनुरोध किया गया कि लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमित्ताओं के लिए केन्द्रीय जांच ब्यूरो को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए. केन्द्र सरकार ने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे का पुरजोर बचाव किया और इनकी कीमत से संबंधित विवरण सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया.
बता दें कि राफेल विमान सौदा 2012 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ था. शुरुआत में, भारत ने फ्रांस से 18 ऑफ द शेल्फ जेट खरीदने की योजना बनाई थी. इसके अलावा 108 विमानों का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाना था.
59 हजार करोड़ के राफेल सौदे में फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉल्ट की रिलायंस मुख्य ऑफसेट पार्टनर है. फ्रांस की एक वेबसाइट ने इस डील से लेकर एक नई रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में दसॉल्ट एविएशन के कथित डॉक्यूमेंट इसकी पुष्टि करते हैं कि उसके पास अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर चुनने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था.
और पढ़ें: संसद सत्र : विरोध प्रदर्शन के बीच लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित
जानें राफेल (Rafale) के बारे में
1. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में लड़ाकू विमान खरीदने की बात चली थी. पड़ोसी देशों की ओर से भविष्य में मिलने चुनौतियों को लेकर वाजपेयी सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा था.
2. काफी विचार-विमर्श के बाद अगस्त 2007 में यूपीए सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई में 126 एयरक्राफ्ट को खरीदने की मंजूरी दी गई. फिर बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया.
3. बोली लगाने की रेस में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल (Rafale), ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35 जैसे कई कंपनियां शामिल हुए लेकिन बाजी डसाल्ट एविएशन के हाथ लगी.
4. जांच-परख के बाद वायुसेना ने 2011 में कहा कि राफेल (Rafale) विमान पैरामीटर पर खरे हैं. जिसके बाद अगले साल डसाल्ट एविएशन के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि तकनीकी व अन्य कारणों से यह बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.
5. काफी दिनों तक मामला अटका रहा. नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राफेल (Rafale Deal) पर फिर से चर्चा शुरू हुई. 2015 में पीएम मोदी फ्रांस गए और उसी दौरान राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता किया गया. समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल (Rafale) लेने की बात की.
6. नए समझौतों के मुताबिक भारत को तय समय सीमा (18 महीने) के भीतर विमान मिलेंगे. विमानों के रख-रखाव की जिम्मेदारी भी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ.
7. नए समझौतों के बाद कांग्रेस सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यूपीए ने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये में सौदा किया था लेकिन मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये रही है.
8. कांग्रेस का आरोप है कि नए समझौते के तहत एक राफेल (Rafale) विमान 1555 करोड़ रुपये का पड़ रहा है. जबकि कांग्रेस ने 428 करोड़ रुपये में डील तय की थी. कांग्रेस का इस डील में रिलायंस डिफेंस को शामिल करने का भी विरोध कर रही है. इस मुद्दे पर राहुल गांधी भी सरकार को घेर रही है.
Source : News Nation Bureau