गर्भपात के लिए पति की मंजूरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार करते हुए साफ कहा कि किसी भी महिला को गर्भपात के लिए पति की सहमति की जरूरत नहीं है।
एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए. एम. खानविलकर की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि एक बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का फैसला लेने का पूरा अधिकार है।
चीफ जस्टिस मिश्रा ने यहां तक कहा कि मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला को भी यह अधिकार है कि वह अपना गर्भपात करा सके।
खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, 'महिला एक वयस्क हैं और वह मां हैं। ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती हैं तो उन्हें गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। इसके लिए महिला के माता-पिता और डॉक्टर को किस आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?'
हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनिल कुमार मल्होत्रा की याचिका को खारिज कर दिया। मल्होत्रा ने महिला के माता-पिता, उसके भाई और डॉक्टर्स पर 30 लाख रुपये के मुआवजे का केस कर दिया था, जिसको 2011 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
इसे भी पढ़ें: आयरलैंड में गर्भपात कानून के खिलाफ सड़क पर उतरे हजारों लोग
हाई कोर्ट ने कहा था, 'महिला कोई मशीन नहीं हैं, जिसमें आपने कच्चा माल रखा जाता है और एक उत्पाद तैयार हो जाता है। वह मानसिक रूप से बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होनी चाहिए।'
क्या था मामला?
याचिकाकर्ता मल्होत्रा की 1995 में शादी हुई थी। हालांकि तनाव के कारण दोनों 1999 से अलग रहने लगे। हालांकि नवंबर 2002 से दोनों ने फिर साथ रहने का फैसला लिया।
लेकिन फिर बात नहीं बनी और 2003 में दोनों की बीच तनाव हुआ और तलाक हो गया। 2003 में जब दोनों ने तलाक लिया उस समय महिला प्रेगनेंट थी। लेकिन महिला इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी और गर्भपात करवाना चाहती थी।
इसे भी पढ़ें: कुंवारी महिलाओंं को मिलेगी गर्भपात की इजाजत, स्वास्थ्य मंत्रालय ने तैयार किया कैबिनेट नोट
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, गर्भपात के लिए महिला को पति की सहमति जरूरी नहीं
- खंडपीठ ने कहा कि बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का फैसला लेने का पूरा अधिकार
Source : News Nation Bureau