एक दलित छात्र को आईआईटी बॉम्बे में एडमीशन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी स्पेशन पावर का इस्तेमाल किया है. सुप्रीम कोर्ट ने छात्रा को 48 घंटे के अंदर एडमिशन देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी-बॉम्बे को एक दलित छात्र को दाखिला देने का आदेश दिया. दरअसल यह छात्र उत्तर प्रदेश के सुदूर गांव का रहने वाला है और तकनीकी समस्याओं की वजह से अपनी फीस समयसीमा के अंदर नहीं भर पाया था.
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा, 'अगर आप ऐसे छात्रों को दाखिला नहीं देंगे, तो फिर आईआईटी की सीटें सिर्फ मेट्रोपॉलिटन शहरों से आने वालों के लिए आरक्षित रहेंगी.' कोर्ट ने आईआईटी को आदेश दिया कि छात्र को सिविल इंजीनियरिंग बीटेक कोर्स में बुधवार से पहले दाखिला दिया जाए. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुदूर इलाकों में रहने वाले कई छात्र अक्सर इंटरनेट की गड़बड़ी के कारण ऑनलाइन फीस नहीं भर पाते हैं. ऐसे में उन्हें प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला दिए जाने से मना नहीं किया जा सकता है.
क्या था मामला
प्रिंस जयबीर सिंह इलाहाबाद में पढ़ता था और उसने आईआईटी-जेईई की परीक्षा पास की. इस दलित छात्र ने परीक्षा में 25 हजार 864 ऑल इंडिया रैंक हासिल की और पिछड़ी जाति के छात्रों में प्रिंस को 864वीं रैंक मिली. इसके बाद 27 अक्टूबर को प्रिंस को सिविल इंजीनियरिंग कोर्स में सीट दी गई थी. आईआईटी बॉम्बे का पोर्टल ऑनलाइन दाखिले की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 31 अक्टूबर तक खुला था. इस दौरान छात्रों को फीस भरनी थी, दस्तावेज अपलोड करने थे और अन्य सारी फॉरमैलिटिज पूरी करनी थी. 29 अक्टूबर को जयबीर ने पोर्टल पर लॉग इन किया और जरूरी दस्तावेज अपलोड किए. हालांकि, पैसों की कमी की वजह से वह फीस नहीं भर पाया. जयबीर ने अपनी बहन से पैसे लेकर 30 अक्टूबर को फीस भरनी चाही. उसने 10 से 12 बार कोशिश की लेकिन तकनीकी समस्या की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया. 31 अक्टूबर को उसने साइबर कैफे जाकर फिर से फीस भरनी चाही लेकिन वहां भी पोर्टल पर तकनीकी समस्या बरकरार रही.
Source : News Nation Bureau