चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ ने एक मत में एडल्टरी कानून (adultery law) को असंवैधानिक करार दे दिया. करीब 157 साल पुराने कानून को लेकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि एडल्टरी अपराध नहीं है, लेकिन अगर पत्नी या पति अपने पार्टनर के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है तो सबूत पेश करने के बाद इसमें खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 7 बड़ी बातें-
-सुप्रीम कोर्ट ने 157 साल पुराने व्यभिचार कानून को रद्द करते हुए कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है. एक लिंग के व्यक्ति को दूसरे लिंग के व्यक्ति पर कानूनी अधिकारी देना गलत है. इसे तलाक का आधार बनाया जा सकता है, लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
-CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें ‘मैं, मेरा और तुम’ सभी शामिल हैं. लेकिन अगर पत्नी अपने लाइफ पार्टनर के व्यभिचार के कारण खुदकुशी करती है, तो सबूत पेश करने के बाद इसमें खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला चल सकता है.
-बेंच ने कहा बताया कि जापान, चीन, ब्राजील में एडल्टरी अपराध नहीं है. यह पूरी तरह निजता का मामला है. एडल्टरी अनहैप्पी मैरिज का नतीजा हो सकता है. ऐसे में अगर इसे अपराध मानकर केस करेंगे, तो इसका मतलब दुखी लोगों को सजा देना होगा.
-चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी महिला को समाज के अनुसार सोचने को मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एडल्टरी कानून मनमाना है. यह महिला की सेक्सुअल चॉइस को रोकता है और इसलिए असंवैधानिक है. महिला को शादी के बाद सेक्सुअल चॉइस से वंचित नहीं किया जा सकता है.
-बेंच में शामिल जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि पुरुष को दोषी और महिला को पीड़ित मानना एक पुरातन ख्याल है, जो आज के समय में सही नहीं है.
-वहीं, जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि यह कानून तय करता है कि मुकदमा कौन कर सकता है और किसके ऊपर कर सकता है. इस तरह का कानून समाज के घिसे-पिटे नियमों और भेदभाव की भावना को मजबूत करता है.
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Source : News Nation Bureau