दो ट्वीट्स के चलते अवमानना के मामले में दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) की सजा पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जिरह जारी है. बहस से पहले प्रशांत भूषण ने सुनवाई टालने की अर्जी दी है और मांग की है कि खुद को दोषी ठहराने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करना चाहते हैं, उससे पहले सजा तय न की जाए. भूषण की ओर से दुष्यंत दवे पेश हुए. उन्होंने कहा है कि अवमानना मामले में दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए उनके पास 30 दिन का वक्त है. इसके बाद उनके पास क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने का विकल्प बचा है. प्रशांत भूषण की ओर से सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी का कथन दोहराया गया कि मैं सजा की भीख नहीं मागूंगा. कोर्ट जो सजा दे उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लूंगा.
बयान पर पुनर्विचार के लिए भूषण को दो दिन का वक्त
सुनवाई के आखिरी चरण में एक बार फिर अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने सजा न दिए जाने की बात की. इस बार उन्होंने आग्रह शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि कोर्ट से आग्रह करता हूं कि प्रशांत भूषण को सजा न दें. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा आप पहले उनका जवाब देखिए, फिर तय कीजिए. इसके बाद लॉ ऑफिसर होने के नाते कोर्ट के सामने अपनी बात रखिए. केके वेणुगोपाल ने भूषण को सज़ा न दिए जाने की मांग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मेरे पास 5 ऐसे रिटायर्ड जजो के नाम है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लोकतंत्र न होने को लेकर सवाल उठाए हैं. 9 ऐसे रिटायर्ड जज हैं जिन्होंने खुलेआम न्यापालिका में करप्शन की बात कही है. जस्टिस मिश्रा ने कहा - हम अभी केस को मेरिट पर नहीं सुन रहे. रिव्यु भी नहीं सुन रहे. हम पहले ही उन्हें दोषी ठहरा चुके है. बहरहाल कोर्ट ने भूषण को अपने बयान पर फिर से विचार के लिए दो दिन का और वक्त दे दिया है.
प्रशांत भूषण ने जनहित के कई मामलों की पैरवी की, कोर्ट सजा में बरते नरमी
सुनवाई के दौरान दुष्यन्त दवे की ओर से पेश राजीव धवन उन जनहित के मसलों का जिक्र किया जिनके लिए प्रशांत भूषण ने पैरवी की. राजवी धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण ने 2जी से लेकर कोल ब्लॉक तक, गोवा खनन, PWC, FCRA फंडिंग से लेकर CVC के चयन तक के मसलों को कोर्ट के सामने रखा है. सजा देते वक्स आप इस बात का भी ध्यान रखें. राजीव धवन ने कहा कि सजा देते वक्त आप ये ध्यान रखे कि कोई न्यायपालिका पर यूं ही प्रहार कर रहा है या फिर न्यायपालिका में सकारात्मक बदलाव का पक्षधर है. इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि प्रशांत भूषण इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं. हम इस बात की सराहना करते है कि उन्होंने जनहित के केस किए. किसी को भी लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए. हर बात में संतुलन ज़रूरी है. 24 साल जज रहते हुए मैंने किसी अवमानना मामले में किसी को दोषी नहीं ठहराया. ये मेरा पहला ऐसा केस है.
भूषण की ओर से पेश धवन ने कटाक्ष भी किये. उन्होंने कहा कि दोषी ठहराये जाने का आपका फैसला पुराने फ़ैसलों का कट पेस्ट है. जब इसे संस्थानों में पढ़ाया जाएगा तो इसकी जबरदस्त आलोचना होगी. जस्टिस मिश्रा ने जवाब दिया कि कोई दिक़्क़त नहीं, हम स्वस्थ आलोचना के लिए तैयार है. धवन चाहते थे कि अपने ट्वीट्स को सही ठहराने के लिए प्रशांत भूषण की ओर से दिए हलफनामे को जज पढ़े. इस पर जस्टिस गवई ने कहा हलफनामे का ये हिस्सा तो पढ़ा ही नहींय इस पर धवन ने चुटकी ली. ऐसा इसलिए नही किया, क्योंकि अगर ये पढ़ा जाता तो कोर्ट को शर्मिंदगी होती. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि आपको पढ़ना है तो बेशक पढ़िए. हम इसको भी देखेंगे. हम तय करेंगे कि ये आपका बचाव है या फिर कोई उकसावे वाली बात!
प्रशांत भूषण का माफी मांगने से इनकार
प्रशांत भूषण ने कहा कि मुझे सज़ा मिलने का दुःख नहीं है. मैं इस बात से दुखी हूं कि मेरी बात को नहीं समझा गया. मुझे मेरे बारे में हुई शिकायत की कॉपी भी नहीं दी गई. मैंने संवैधानिक ज़िम्मेदारियों के प्रति आगाह करने वाला ट्वीट कर के अपना कर्तव्य निभाया है. वह अभी भी अपने ट्वीट्स पर कायम है. प्रशांत भूषण ने कहा कि मुझे हैरानी है इस बात की मेरे ट्वीट्स को न्यायपालिका को अस्थिर करने की कोशिश के तौर पर पेश किया गया. एक स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसी बात कहने की इजाज़त होनी चाहिए. मैंने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाई है. किसी तरह की माफी मांगना, अपनी कर्त्तव्य की उपेक्षा करना होगा. आपको जो उचित लगे, वो सज़ा दीजिए पर मैंने अपनी ड्यूटी निभाई है.
सजा टालने के पक्ष में नहीं सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अरुण मिश्रा दो सितंबर को रिटायर हो रहे है. प्रशान्त भूषन की ओर से पेश वकील दुष्यन्त दवे सज़ा पर जिरह टालने आ आग्रह कर रहे है लेकिन जस्टिस मिश्रा इससे सहमत होते नज़र नहीं आते. दवे ने कहा कि आसमान नहीं गिर जाएगा अगर कोर्ट रिव्यू पर फैसला आने तक सज़ा पर फैसला टाल देता है. वहीं दूसरी ओर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि सजा दिया जाना, दोषी ठहराए जाने के फैसले के बाद की प्रक्रिया है. दोषी ठहराने वाली बेंच ही सज़ा तय करती है. यह स्थापित प्रक्रिया है.
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क्या था मामला
27 जून को प्रशांत भूषण ने अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ और दूसरा ट्वीट मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े के खिलाफ किया था. 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रशांत भूषण को नोटिस मिला. प्रशांत भूषण ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था कि जब भावी इतिहासकार देखेंगे कि कैसे पिछले छह साल में बिना किसी औपचारिक इमरजेंसी के भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा चुका है, वो इस विनाश में विशेष तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भागीदारी पर सवाल उठाएंगे और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को लेकर पूछेंगे.
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हालांकि पहले प्रशांत भूषण ने उन दो ट्वीट का बचाव किया था, जिसमें कथित तौर पर अदालत की अवमानना की गई है. उन्होंने कहा था कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते. प्रशांत भूषण ने देश के सर्वोच्च न्यायलय और मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े के खिलाफ ट्वीट किया था, जिस पर स्वत: संज्ञान लेकर कोर्ट कार्यवाही कर रहा है.
प्रशांत भूषण के खिलाफ 11 साल पुराने अवमानना के एक और मामले में सुनवाई शुरू हो गई है. उस समय प्रशांत भूषण ने एक इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के आधे जजों को भ्रष्ट कहा था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को नहीं माना और उनके खिलाफ मामला चलाने का आदेश दिया.
Source : News Nation Bureau