Supreme Court on Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट आज (15 फरवरी) चुनावी बॉन्ड पर अपना फैसला सुनाते हुए उसे असंवैधानिक करार दिया. इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट चुनावी बॉन्ड पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मतदाता को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट को सार्वजनिक करना होगा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने पिछले साल दो नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बता दें कि 2018 में केंद्र सरकार ने इलेक्टॉरल बॉन्ड की शुरुआत की थी. इसके तहत राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे या फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए लाया गया था. जिसे राजनीतिक दलों को दिले जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था.
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कहां मिलता है चुनावी बॉन्ड
बता दें कि राजनैतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए अब चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल किया जाता है. ये देश की स्टेट बैंक की कुछ चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. इसे कोई भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था खरीद सकती है. एक चुनावी बॉन्ड की कीमत 1000 रुपये, 10 हजार, एक लाख या एक करोड़ रुपये तक हो सकती है. कोई भी व्यक्ति जिस पार्टी को चंदा देना चाहता है, वह ये चुनावी बांड खरीदकर राजनीतिक पार्टी को दे सकता है. इस बॉन्ड की खास बात ये है कि चंदा देने वाले व्यक्ति को बॉन्ड में अपना नाम नहीं लिखना पड़ता.
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चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने की शर्तें
इन चुनाव बॉन्ड को उन्हीं राजनीतिक दलों को दिया या वे दल ही इसे प्राप्त कर सकते हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं. साथ ही जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों.
चुनावी बॉन्ड पर किसने दायर की याचिकाएं?
कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कुल चार याचिकाएं दाखिल की थीं. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि चुनावी बाॉन्ड के जरिए हुई गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती हैं और ये मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती हैं.
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याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से दान देने की अनुमति दी गई है. बता दें कि इन याचिकाओं पर पिछले साल 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की थी. इन याचिकाओं की सुनवाई करने वाली बेंट में पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.
Source : News Nation Bureau