सबरीमाला मामले को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संविधान पीठ को सौंपने का फैसला सुनाया है. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस सबरीमाला मामले पर दाखिल की गईं पुनर्विचार याचिका को पेंडिंग रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए बताया कि यह मामला केवल सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का ही नहीं है, बल्कि मस्जिदों-दरगाहों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश की मांग से भी जुड़ी हो सकती है. परंपरा संवेधानिक नैतिकताओं से ऊपर नहीं हो सकती. यह मामला आगे विचार के लिए बड़ी संविधान पीठ को सौंपा जाए.
जानकारी के मुताबिक 3:2 के बहुमत से ये मामला आगे विचार के लिए बड़ी बेंच का भेजा गया. बताया जा रहा है कि नई बड़ी बेंच सबरीमाला के अलावा, मुस्लिम महिलाओं की मस्जिद में एंट्री, पारसी महिलाओं की पारसी मन्दिर में एंट्री और दाऊदी बरोहा समुदाय में प्रचलित खतना जैसी परम्पराओ पर भी विचार करेगी. इस मामले पर चीफ जस्टिस की टिप्पणी करते हुए कहा, किसी व्यक्ति के पूजा का अधिकार, किसी समुदाय विशेष की धर्मिक परंपरा को नजरअंदाज़ नहीं कर सकता.
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जानकारी के मुताबिक जस्टिस नरीमन मामले को विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजे जाने के विरोध में थे. जस्टिस नरीमन ने कहा, अगर एक बार सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ गया तो वो सब पर लागू होता है और मान्य है. फैसला न लागू हो पाए, इसे रोकने के लिए की गई कोशिशें से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल केरल के सबरीमाला मंदिर मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी थी. हालांकि इसके बावजूद महिलाओं को मंदिर प्रवेश करने से रोका गया. इस दौरान काफी हंगामा हुआ जो कई दिनों तक चलता रहा. वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी कई पुनर्विचार याचिका दाखिल कई गईं. इन पुनर्विचार याचिकाओं की संख्या कुल मिलाकर 65 थीं. सुप्रीम कोर्ट ने आज इन्हीं पुनर्विचाक याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए इन्हें बड़ी संविधान पीठ के पास विचार के लिए भेज दिया है.
इस मामले में CJI, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा बड़ी बेंच को भेजने के पक्ष में थे जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन की राय अलग थी. बता दें, सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के फैसले से पहले 10 से 50 साल तक की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक थी. परंपरा अनुसार लोग इसका कारण महिलाओं के पीरियड्स यानि मासिक धर्म को बताते हैं क्योंकि मंदिर में प्रवेश से 40 दिन पहले हर व्यक्ति को तमाम तरह से खुद को पवित्र रखना होता है और मंदिर बोर्ड के अनुसार पीरियड्स महिलाओं को अपवित्र कर देते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति दे दी.
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सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की महिलाओं के प्रवेशष को लकेर कब से शुरू हुआ विवाद
1990 में जनहित याचिका दाखिल की गई
· इस साल एस. महेंद्रन नाम के एक शख्स ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की. यह याचिका मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर थी. साल 1991 में कोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाया कि महिलाओं को सबरीमाला मंदिर नहीं जाने दिया जाएगा.
कन्नड़ अभिनेत्री के दावे से हुई विवाद की शुरुआत
· 2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है.
· इसके बाद ही कन्नड़ ऐक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए। उन्होंने कहा था कि वह प्रायश्चित करना चाहती हैं.
· अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि 1987 में अपने पति के साथ जब वह मंदिर में दर्शन करने गई थीं तो भीड़ की वजह से धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं. जयमाला का कहना था कि वहां पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका
· जयमाला के दावे पर केरल में हंगामा होने के बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया। 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की.
· इसके बावजूद अगले 10 साल तक महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मामला लटका रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने किया था हस्तक्षेप
· याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति न देने पर जवाब मांगा था.
· बोर्ड ने कहा था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां व महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं , जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो.
· 7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख जाहिर किया था कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है.
सबरीमाला मुद्दे पर खूब हुई राजनीति
· 2006 में मंदिर में प्रवेश की अनुमति से जुड़ी याचिका दायर होने के बाद 2007 में एलडीएफ सरकार ने प्रगतिशील व सकारात्मक नजरिया दिखाया था.
· एलडीएफ के रुख से उलट कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बाद में अपना पक्ष बदल दिया था.
· चुनाव हारने के बाद यूडीएफ सरकार ने कहा था कि वह सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हैं.
· यूडीएफ का तर्क था कि यह परंपरा बीते 1500 साल से चली आ रही है.
· बीजेपी ने इस मुद्दे को दक्षिण में पैर जमाने के मौके की तरह देखा और बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के महिलाओं के हक में फैसले के विरोध में हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं ने केरल राज्य सचिवालय की ओर मार्च किया.
· महिला अधिकार संगठनों ने इसे मुद्दा बनाया साथ ही भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने भी सबरीमाला मंदिर आने की बात कही है.
कोर्ट ने माना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
· 11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है.
· सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए।
· 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई , 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी.
महिलाओं के हक में आया ऐतिहासिक फैसला
· 28 सितंबर , 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी.
· सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है. यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है. यह स्वीकार्य नहीं है.