पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु में कठपुतली मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा शुरू हुई है। खासकर एआईएडीएमके की महासचिव जे जयललिता ने यह परंपरा तमिलनाडु की राजनीति में शुरू की। सुप्रीम कोर्ट से दोषी करार दिए जाने के बाद एक बार फिर इस परंपरा को निभाने की कोशिश शशिकला कर रही हैं। ऐसे में लड़ाई अब दो प्रतिनिधियों के बीच होगी। फिलहाल कुछ दिन राज्य की राजनीति जयललिता के प्रतिनिधि पन्नीरसेल्वम और शशिकला के प्रतिनिधि ई के पालानिसामी के इर्द-गिर्द घूमेगी।
आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला को दोषी ठहराया है। उन्हे चार साल जेल की सज़ा हुई है। और इसके साथ ही कोर्ट ने उनके राजनीतिक मंसूबो पर भी पानी फेर दिया है। वो अब अगले दस साल चुनाव नहीं लड़ पायेंगी। जेल टर्म पूरा करने के बाद भी वलो छह साल चुनाव नहीं लड़ पायेंगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तमिलनाडु में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदले हैं। राज्य की बागडोर अपने हाथ में रखने के लिेये संभवत: शशिकला ने प्लान बना रखा था। विधायकों की बैठक के बाद उन्होंने आनन-फानन में ई के पलानिसामी को विधायक दल का नेता घोषित कर दिया है।
इस समय राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिये दो कठपुतली दावेदार हैं। एक जयललिता के प्रतिनिधि व कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम और दूसरी तरफ ई के पलानिसामी को शशिकला ने 'प्लान बी' के तहत प्रतिनिधि घोषित कर दिया है।
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सवाल यह है कि दोनों ही खुद को जयलललिता के उत्तराधिकारी होने का दावा कर रहे हैं। एक तरफ पन्नीरसेल्वन हैं जो कार्यकारी मुख्यमंत्री भी हैं। और जयललिता के रहते भी दो बार मुख्यमंत्री रहे जब अम्मा खुद जेल में थीं। यानि अम्मा ने उन्हे अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी समझा या नहीं पर अपनी दोनो जेल यात्रा के दौरान उन्होने गद्दी अपने भरोसेमंद पन्नीरसेल्वन को ही संभालने की ज़िम्मेदारी दी। इसलिये जयललिता के मरने के बाद पार्टी ने पन्नीरसेल्वन को ही मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। शशिकला को पार्टी का महासचिव चुन लिया गया। शशिकला ने सोचा होगा महासचिव बनने के बाद मुख्यमंत्री भी वही बनेंगी। जैसा कि जयललिता भी पार्टी महासचिव के साथ साथ मुख्यमंत्री भी थीं।
तो क्या पन्नीरसेल्वन को मुख्यमंत्री बनाना पार्टी और शशिकला के लिये भारी पड़ा। दो बार पहले भी जयललिता का प्रतिनिधित्व कर चुके पन्नीरसेल्वम की लड़ाई अब शशिकला के प्रतिनिधि पलानिसामी से है।
पलानिसामी को पार्टी के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद समर्थन की चिट्ठी भी राज्यपाल सी विद्यासागर राव को भेज दी गई है। ऐसे में अब देखना ये होगा कि पन्नीरसेल्वम के समर्थन में कितने विधायक टूट कर आते हैं। हालांकि उनके समर्थन में अब तक 11 सांसद और लगभग उतने ही विधायक शशिकला के खिलाफ बगावत करके आ गए हैं।
दरअसल पन्नीरसेल्वम को जयललिता ने कर्नाटक की विशेष अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाए जाने के बाद अपने प्रतिनिधि के तौर पर मुख्यमंत्री बनाया था।
पहली बार पन्नीरसेल्वम को जयललिता ने 2001 में तांसी ज़मीन घोटाले में जेल होने के बाद अपने प्रतिनिधि के तौर पर मुख्यमंत्री बनाया था। दूसरी बार 2015 में उन्हें जयललिता ने मुख्यमंत्री के मनोनीत किया था जब आय से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा था। बाद में कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा बरी किये जाने के बाद पन्नीरसेल्वम ने उन्हें मुख्यमंत्री का पद वापस दे दिया।
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इसी तरह से सितंबर 2016 में बीमार पड़ने के बाद अम्मा को अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती होना पड़ा और पन्नीसेल्वम को एक बार मुख्यमंत्री बनाया गया।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शशिकला की राजनीति में आने के सपनों पर बिजली गिर गई है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना फिलहाल पूरा होता नज़र नहीं आता लेकिन पार्टी की बागडोर वो अपने हाथ में रखना चाहती है।
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शशिकला जयललिता की करीबी रह चुकी हैं, और अब लड़ाई इस बात की होगी कि पन्नीरसेल्वम भी खुद को जयललिता के करीब रहने का दावा करते हैं। पन्नीरसेल्वम को जयललिता ने अपने प्रतिनिधि के रूप में मुख्यमंत्री बनाया था और शशिकला भी खुद को जयललिता का प्रतिनिधि मानती हैं और उन्होंने प्रतिनिधि पलानिसामी को विधायक दल का नेता घोषित किया है। ऐसे में अब लड़ाई जयललिता के प्रतिनिधि और प्रतिनिधि के प्रतिनिधि के बीच होगी जो तमिलनाडु का भविष्य और राजनीति तय करेगी।
Source : Pradeep Tripathi