भारत में 5 सितंबर हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज बुधवार यानी टीचर डे के मौके पर छात्र और शिक्षक भारत में बड़ी ही सादगी से यह दिन मना रहे हैं। इस मौके पर छात्र अपने शिक्षकों को धन्यवाद कह रहे हैं, लिखकर अपने भावों को जाहिर कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी अपने शिक्षकों के लिए संदेश लिख रहे हैं। एक अच्छा शिक्षक वहीं है जो न विषयों में भेद करे न ही अपनी छात्रों में। एक शिक्षक के लिए इससे बेहतर तौहफा नहीं हो सकता कि उसका छात्र जीवनभर उनकी पढ़ाई बातों को याद रखे।
दरअसल इस दिन महान शिक्षाविद और विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। भारत के शिक्षा क्षेत्र में राधाकृष्णन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। राधाकृष्णन का मानना था कि ‘एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर दिमाग होता है’।
भारत गुरु-शिष्य परंपरा का साक्षी रहा है। भारतीय परंपरा को रूप देने में यहां के गुरूओं का अहम योगदान रहा है। हम आपको आज ऐसे ही कुछ गुरूओं के बारे में बता रहे हैं, जिनके विचारों को लोग आज में मानते हैं और उनमें विश्वास करते हैं।
द्रोणाचार्य
महाभारत के प्रमुख चरित्र द्रोणाचार्य गुरू शिष्य परंपरा के महान गुरूओं में गिने जाते हैं। लोग उन्हें आज भी ससम्मान पूर्वक गुरू द्रोणाचार्य कह कर संबोधित करते हैं। कहा जाता है कि वह अपने शिष्यों को बेहतरीन तरीकों से ज्ञान देते थे। उन्हीं के कारण एकलव्य एक अच्छा धनुरधारी बन सका। यहीं कारण है कि एकलव्य ने गुरूदक्षिणा में अपना अंगूठा काट कर गुरू द्रोणाचार्य को दे दिया।
महर्षि वेदव्यास
महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास को आज भारत के महानतम गुरूओं में याद किया जाता है। उन्होंने महाभारत जैसे महा ग्रंथ की रचना की थी। वह पूरे महाभारत काल के साक्षी रहे थे। उनके लिखे इस ग्रंथ से लोग आज भी प्रेरणा लेते हैं। भारतीय संस्कृति पर लिखी गया यह ग्रंथ प्राचीन काल की महानतम पुस्तकों में शामिल है।
परशुराम
भगवान विष्णु का छठा अवतार माने जाने वाले परशुराम अपने पराक्रम के कारण प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि कोर्धी और हठी परशुराम का लक्ष्य मानव मात्र हित करना था। बता दें कि राम और सूर्य पुत्र कर्ण इन्हीं के शिष्य थे।
चाणक्य
कौटिल्य के नाम से जाने गए चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। अर्थशास्त्र राजनीतिक और आर्थिक नीतियों पर उनके द्वारा लिखी गई बेहतरीन किताब है। उन्होंने नंद वंश का नाश करके चंद्रगुप्त को राजा बनने में सहायता की थी।
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गुरु वशिष्ठ
गुरू वशिष्ठ राजा दशरथ के चारों पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन के गुरू थे। उन्होंने राजा दशरथ के बहुत से अन्य लोगों को शिक्षा दी थी। उनके सम्मान में बड़े-बड़े राजा भी अपना सर झुकता थे। उन्होंने शिक्षण परंपरा को नए आयाम दिए। यही कारण है कि वह गुरू शिष्य परंपरा के महानतम गुरूओं में शामिल है।
Source : News Nation Bureau