केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में (Supreme Court of India) में हलफनामा दायर कर कहा है कि कोई राज्य यूं ही अपने यहां होने वाले अपराध के सभी मामलों की सीबीआई जांच के लिए दी गई अनुमति को वापस नहीं ले सकता. ऐसा किसी ख़ास केस में ही किया जा सकता है और इसके लिए उसके पास उपयुक्त कारण होने चाहिए. केंद्र सरकार का ये जवाब पश्चिम बंगाल सरकार की अर्जी के जवाब में आया है. पश्चिम बंगाल के मामलों में सीबीआई की तरफ से एफआईआर दर्ज होने के खिलाफ राज्य सरकार ने याचिका दायर की हुई है. ममता सरकार का कहना है कि उसने सीबीआई को राज्य के मामलों में केस दर्ज करने की अनुमति 3 साल पहले वापस ले ली थी. उसके बाद भी 12 मामलों में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है. ये ग़ैरकानूनी है और केंद्र- राज्य के बीच शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी मामले की जांच सीबीआई से कराने की सहमति वापस लेने का आदेश या सभी मामलों में सहमति वापस लेने का व्यापक आदेश, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा-6 के तहत मिली शक्ति का बेजा इस्तेमाल है. केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने कहा है कि पश्चिम बंगाल राज्य का यह दावा है कि उसके पास सीबीआई से जांच वापस लेने की पूर्ण शक्ति है, आधारहीन है. केंद्र ने कहा है कि सीबीआई जांच के लिए सहमति देने की राज्य सरकार की शक्ति में किसी भी मामले में सहमति न देने या पहले से दी गई सहमति को वापस लेने के लिए व्यापक निर्देश पारित का अधिकार शामिल नहीं है.
केंद्र सरकार का यह जवाब कई मामलों की जांच सीबीआई को देने के खिलाफ पश्चिम बंगाल द्वारा दायर एक मूल वाद (सूट) पर आया है. इन मामलों में चुनाव बाद हिंसा और कोयला चोरी का मामला शामिल है. याचिका में कहा गया है कि चूंकि तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसी को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली गई है इसलिए दर्ज की गई प्राथमिकी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है.