फिल्मकार विवेक रंजन अग्निहोत्री ने 'द कश्मीर फाइल्स' नाम से फिल्म बनाई, जिसे पूरे देश में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है. लोग फिल्म में दिखाई चीजों को लेकर बेहद गंभीर दिख रहे हैं. ऐसे में कश्मीरी पंडितों के प्रति न सिर्फ सहानुभूति दिख रही है, बल्कि उन्हें न्याय दिलाने की मांग भी तेज हो रही है. इसी मामले में एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) को लिखे एक पत्र में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार (Kashmiri Pandits killings) से संबंधित सभी मामलों को फिर से खोलने और कश्मीर घाटी में हत्याओं की घटनाओं की फिर से जांच करने के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने का निर्देश देने की मांग की है.
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता विनीत जिंदल ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में 1989-1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के मामलों की जांच के लिए उन्हें फिर से खोलने और जांच के लिए एक एसआईटी के गठन की मांग की है. जिंदल ने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि एसआईटी को अब तक दर्ज मामलों की पूरी तरह से जांच करनी चाहिए और पीड़ितों को एक मंच प्रदान करना चाहिए जो न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तत्कालीन प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण अपने मामलों की रिपोर्ट करने में असमर्थ थे. वकील ने तर्क दिया कि यदि 33 साल पहले हुए सिख विरोधी दंगों से संबंधित मामलों को फिर से खोला जा सकता है और फिर से जांच की जा सकती है, तो 27 साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के मामलों को भी फिर से खोला जा सकता है और फिर से जांच की जा सकती है.
जिंदल ने पत्र में कहा कि घटनाओं के शिकार लोग शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आघात की स्थिति में थे और पिछले कई वर्षों से अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी शिकायतों को दर्ज कराने, बयान दर्ज कराने की स्थिति में नहीं थे और इसलिए न्याय के अवसर से वंचित हैं. पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते हुए जिंदल ने तर्क दिया कि जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि न्याय का दायित्व काफी हद तक पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों के पास है, जो नरसंहार और नुकसान से बिल्कुल अनभिज्ञ हैं. ऐसे कश्मीरी पंडितों को सरकार और संबंधित अधिकारियों द्वारा एक और मौका दिया जाना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- कश्मीरी पंडिकों को न्याय दिलाने की गुहार
- वकील ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख एसआईटी जांच की मांग की
- सिख दंगों के मामले खुल सकते हैं तो कश्मीरी ब्राह्मणों पर अत्याचार के क्यों नहीं?