पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के रविवार शाम तक के परिणाम बता रहे हैं कि राज्य के लोगों ने चुनावों के ध्रुवीकरण के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रयास को खारिज कर दिया है. भाजपा, जिसने राज्य में ममता बनर्जी सरकार को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी, उसे 294 सदस्यीय विधानसभा में 100 सीटें मिलने की संभावना भी नहीं दिखाई दे रही है. पार्टी को अपेक्षा के अनुरूप सीटें नहीं मिलते देख इसके पीछे के कारणों पर बात करते हुए एक भाजपा नेता ने कहा कि उनकी रणनीति वांछित परिणाम देने में विफल रही.
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि लोगों ने असोल परिबोर्तन से लेकर खेला होबे तक सब कुछ खारिज कर दिया है. बता दें कि पहले चरण के चुनाव प्रचार से पहले ही ममता बनर्जी ने खेला होबे यानी खेल होगा का नारा दिया था. एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि हमारा नेतृत्व बंगाल और उसकी संस्कृति की नब्ज को समझने में विफल रहा और यही कारण है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में 121 विधानसभा क्षेत्रों में अग्रणी होने के बावजूद, हम दो साल से कम अवधि में 100 से कम सीटों पर जीत हासिल करने में भी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं.
प्रारंभिक विश्लेषण में पाया गया है कि भगवा पार्टी द्वारा सांप्रदायिक आधार पर चुनावों के ध्रुवीकरण के सभी प्रयास विफल रहे. भाजपा के एक नेता ने कहा कि लोगों ने ध्रुवीकरण या सांप्रदायिक राजनीति की राजनीति को खारिज कर दिया है. मुस्लिम वोटों ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पक्ष में ध्रुवीकरण किया, जबकि बंगाली हिंदू ने भी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया और टीएमसी को वोट दिया. भाजपा की हार का एक अन्य महत्वपूर्ण कारक विश्वसनीय बंगाली चेहरों की अनुपस्थिति और चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बनर्जी के बीच की लड़ाई बनाना रहा है.
पश्चिम बंगाल के एक भाजपा नेता ने कहा कि शुरू से ही पार्टी ने इसे मोदी जी (गैर-बंगाली) बनाम ममता दीदी (बंगाली) के बीच एक प्रतियोगिता बना दिया. बंगाली चेहरे की अनुपस्थिति ने ही हमारे खिलाफ काम किया. भगवा खेमे का मानना है कि राज्य की संस्कृति को समझने में केंद्रीय नेतृत्व की विफल रहा है, जिसका फायदा टीएमसी को सीधे तौर पर मिला है. लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को आधार बनाते हुए भाजपा ने बंगाल में 200 से अधिक सीटें जीतने का प्लान बनाया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने पूरी ताकत के साथ प्रचार भी किया, मगर उसे अपेक्षित सफलता मिलनी नहीं दिख रही है. परिणामों ने यह भी दिखाया है कि एक तरफ जहां बनर्जी ने ग्रामीण बंगाल में अपनी पकड़ बनाए रखी, वहीं दूसरी तरफ शहरी मतदाता भाजपा से दूर चले गए.
HIGHLIGHTS
- बीजेपी नहीं पहचान पाई जनता की नब्ज
- दो साल में भी नहीं छू सकी 100 सीटों का आंकड़ा
- साल 2019 के लोकसभा में जीती थीं 18 सीटें