अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से पहले, देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने बुधवार को कहा कि बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद पर शीर्ष अदालत का जो भी फैसला होगा, उसे माना जाएगा. उन्होंने सभी से न्यायालय के फैसले का सम्मान करने की अपील की. जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने यहां एक प्रेस वार्ता में कहा कि हमने उच्चतम न्यायालय में अपने सबूत पेश किए हैं और अब जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान करना चाहिए.
मदनी ने यह भी उम्मीद जताई कि शीर्ष अदालत कानून के आधार पर फैसला देगी न कि आस्था के आधार पर. उन्होंने यह भी कहा कि देश में सांप्रदायिक सौहार्द हर-हाल में कायम रहना चाहिए. मदनी ने कहा कि कुछ महीने पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से उनकी मुलाकात भी इसी मुद्दे को लेकर हुई थी. जमीयत प्रमुख ने कहा, ‘‘ जिस तरह से हिन्दू मुस्लिम एकता दोनों समुदायों की रीढ़ की हड्डी है, उसी तरह से वे देश की भी रीढ़ की हड्डी हैं.’’ मौलाना मदनी ने कहा, ‘‘ हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर ही मेरी मुलाकात आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत से हुई थी. हम अपने-अपने नजरिए पर रहकर, इस बात पर सहमत हुए हैं कि देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता हर हाल में बनी रहनी चाहिए. इसके लिए वह (भागवत) भी कोशिश कर रहे हैं और हम भी कोशिश कर रहे हैं.’’
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मदनी और भागवत की मुलाकात अगस्त में हुई थी. बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद पर उन्होंने कहा, ‘‘मस्जिद को ले कर मुसलमानों का मामला पूरी तरह से ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है और बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़ कर नहीं कराया गया है.’’ अदालत के फैसले से पहले किसी तरह की मध्यस्थता की सम्भावना को खारिज करते हुए मदनी ने कहा, ‘‘बाबरी मस्जिद शरिया के मुताबिक एक मस्जिद है और कयामत तक मस्जिद रहेगी. किसी शख्स के पास यह अधिकार नहीं है कि वह किसी विकल्प की उम्मीद में मस्जिद के दावे से पीछे हट जाए.’’ प्रतिष्ठित मुस्लिम नेता ने कहा कि बाबरी मस्जिद का मुकदमा न केवल जमीन की लड़ाई है, बल्कि मुकदमा देश के संविधान और कानून की सर्वोच्चता का भी मुकदमा है.
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उन्होंने यह भी कहा, ‘‘ हर न्यायप्रिय चाहता है कि सबूतों, साक्ष्यों और कानून के अनुसार इस मुकदमे का फैसला हो, आस्था के आधार पर नहीं ... और हमें यकीन है कि संवैधानिक पीठ जो फैसला देगी वह कानून को मद्देनजर रखते हुए देगी.’’ मदनी ने कहा, ‘‘ उच्चतम न्यायालय ने खुद कहा है कि यह मालिकाना हक का फैसला है और सबूतों के आधार पर शीर्ष अदालत जो भी निर्णय देगी वह हमें स्वीकार होगा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ जमीयत उलेमा-ए हिन्द सभी नागरिकों को, चाहे वे मुस्लिम हों या हिन्दू, यह मशविरा देती है कि वे कानून का सम्मान करें, चाहे फैसला उनके पक्ष में आए या खिलाफ आए.’’ शीर्ष अदालत धार्मिक भावनाओं एवं राजनीति के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 17 नवंबर से पहले फैसला सुना सकती है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई उसी दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं. वह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे हैं.