भले ही कांग्रेस पर हिंदू विरोधी पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं और विरोधी पार्टियां उसे घेरती रही हैं, लेकिन कांग्रेस ने कुछ ऐसे काम भी किए हैं, जिनके बूते ऐसे आरोपों से पार्टी अपना पल्ला झाड़ सकती है. सबसे पहले तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में अयोध्या में राम मंदिर के ताले खुलवाए. भले ही वह शाहबानों प्रकरण से नाराज हिन्दुओं को मनाने की कोशिश थी, लेकिन अगर राजीव गांधी मंदिर का ताला न खुलवाते तो आज राम मंदिर का मुद्दा इतना बुलंदियों पर न होता.
इसके अलावा, राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस खुद को हिंदूवादी दिखाने की कोशिश कर रही है. गुजरात चुनाव के पहले से ही राहुल गांधी सोमनाथ से लेकर कई छोटे-बड़े मंदिरों में गए. कई बार जनेऊ धारण करते उनकी फोटो वायरल हुई तो कई बार रुद्राक्ष की माला पहने फोटो सुर्खियां बनीं. गुजरात विधानसभा के दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गांधी ने अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर का दर्शन किया था. राहुल ने इस दौरान सफेद कुर्ता-पजामा पहन रखा था और इस दौरान उनके गले में रूद्राक्ष की माला दिख रही थी. राहुल की दादी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रूद्राक्ष की माला पहनती थीं. माना जा रहा है कि जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के बाद राहुल गांधी ने यह माला पहनी.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह ने भी ऐसा एक काम किया था, जिससे उन्हें हिंदू विरोधी नहीं कहा जा सकता. दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत की और उसे पूरा कर दिखाया. इस दौरान उन्होंने सैकड़ों किलोमीटर तक नर्मदा नदी के किनारे यात्रा की.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जारी मेनिफेस्टो (घोषणापत्र, जिसे कांग्रेस ने वचनपत्र का नाम दिया है) में कांग्रेस ने हर गांव में गोशाला बनवाने का वादा किया है. गोशाला के जरिए गायों की सुरक्षा और संरक्षा की बात कांग्रेस ने कही है. इस तर्क के साथ भी यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी नहीं है.
1965 में पाकिस्तान से लड़ाई के बीच प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आरएसएस से दिल्ली की कानून और ट्रैफिक व्यवस्था संभालने के लिए स्वयंसेवकों को दिल्ली भेजने का आह्वान किया था. आरएसएस ने न सिर्फ दिल्ली को संभाला, बल्कि कश्मीर में सेना की हवाई पटि्टयों से बर्फ हटाने के लिए भी अपने स्वयंसेवकों को तत्काल रवाना कर दिया. इतना ही नहीं, सेना के घायल जवानों के बड़ी मात्रा में रक्त की आवश्यकता थी, इसलिए स्वयंसेवकों ने ही पहल की और सबसे पहले रक्तदान के लिए आगे आए. इससे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 को आरएसएस के स्वयंसेवकों को 26 जनवरी की परेड में शामिल होने के बुला आमंत्रित किया था. उस दिन 3500 से अधिक स्वयंसेवक सफेद शर्ट और खाकी नेकर में परेड में शामिल हुए. तब नेहरू ने कहा था– लाठी के बल पर भी बमों और चीन की सेनाओं का मुकाबला किया जा सकता है, यह आरएसएस ने साबित कर दिखाया है.
Source : News Nation Bureau