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लालू यादव ने आडवाणी को कराया था गिरफ्तार, जानिए क्या थी वजह

1992 का वो दौर जब अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था. हाल में अपनी रथयात्रा से देश भर और खास तौर से हिन्दी बैल्ट में अपनी एक अलग पहचान बना चुके लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता किसी जननायक से कम नहीं थी.

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Kuldeep Singh
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Lal Krishna Advani

लालकृष्ण आडवाणी( Photo Credit : फाइल फोटो)

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1992 का वो दौर जब अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था. हाल में अपनी रथयात्रा से देश भर और खास तौर से हिन्दी बैल्ट में अपनी एक अलग पहचान बना चुके लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता किसी जननायक से कम नहीं थी. यह वह दौर था जब आडवाणी अपनी रथयात्रा से देश में हिंदुत्व की राजनीति की नींव रख चुके थे. इसी राजनीतिक ने बीजेपी से उस दौर में 2 से 120 सीट तक पहुंचा दिया था. जब बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ तो आडवाणी किसी नायक के तौर पर उबर कर सामने आए. 

बीजेपी के पितामह और 1992 के अयोध्या आंदोलन के नायक लालकृष्ण आडवाणी का आज 92वां जन्मदिन है. यह संयोग ही है कि 1992 के हीरो रहे लालकृष्ण आडवाणी के 92वें जन्मदिन के कुछ ही दिनों बाद अयोध्या मामले में देश की सर्वोच्च अदालत अपना फैसला सुनाने वाली है.

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कराची में जन्मे, विभाजन के बाद आए मुम्बई
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को हुआ था. उनके पिता का नाम था कृष्णचंद डी आडवाणी और माता थीं ज्ञानी देवी. आडवाणी की प्रारंभिक शिक्षा कराची में स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने सिंध में कॉलेज में दाखिला लिया. 1947 जब देश का विभाजन हुआ तो आडवाणी का परिवार मुम्बई आ गया. यहां पर उन्होंने कानून की शिक्षा ली. बताया जाता है कि जब आडवाणी जब 14 साल के थे तभी वह संघ से जुड़ गए थे.

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भारत आते ही जनसंघ से जुड़े
विभाजन के दौरान जब आडवाणी भारत आए तो उनकी मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई. वह 1951 में जनसंघ से जुड़े. इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की स्थापना हुई तो आडवाणी उसका अहम हिस्सा बने. आडवाणी के राजनीतिक सफर से असली शुरूआत 1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ हुई. आडवाणी ने अपनी हिंदुत्व की राजनीति से भारतीय राजनीति की विचारधारा ही बदल दी. आज के दौर में हिंदुत्व की जिस राजनीति को कई राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति में शामिल कर लिया है उसका पहला प्रयोग लालकृष्ण आडवाणी ने ही किया. आडवाणी के प्रयोग का ही नतीजा है कि 1984 में महज दो सीटों से शुरू हुई आज 303 सीटों तक पहुंच चुकी है.

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हिंदुत्व की राजनीति की रखी नींव
1980 के दौर में विश्व हिन्दू परिषद राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरूआत कर चुकी थी. जब यह संगठन अकेले राममंदिर निर्माण के लिए आंदोलन में था. आंदोलन को किसी भी बड़े राजनीतिक दल का समर्थन नहीं था. आडवाणी की दूरदृष्टि ने इस मौके पर भांल लिया. वह खुलकर इस आंदोलन के समर्थन में उतर आए. बीजेपी की स्थापना के बाद 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो उसके बाद आम चुनाव कराए गए. इस चुनाव में बीजेपी की महज दो सीटें ही आई. 1989 में बीजेपी ने इस आंदोलन को औपचारिक रुप से समर्थन देना शुरू कर दिया था. बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का वादा अपने घोषणा पत्र में शामिल किया. राममंदिर को समर्थन देने के फैसले का बीजेपी को सीधे तौर पर फायदा हुआ. 89 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 2 से बढ़कर 86 हो गई. तब आडवाणी समझ चुके थे कि अगर दिल्ली में सरकार बनानी है कि हिंदुत्व की राजनीति को और धार देने की जरूरत है. आडवाणी ने इसी राजनीति की रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी.

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रथयात्रा ने दिलाई देशभर में पहचान
आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को राममंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए रथयात्रा शुरू कर दी. आडवाणी ने काफी सोचसमझ कर इसकी रणनीति तैयार की. उन्होंने यात्रा की शुरूआत सोमनाथ मंदिर से की. इस रथयात्रा का समापन अयोध्या में किया जाना था. इन दोनों ही स्थानों का चयन किए जाने के पीछे एक कारण था. आम लोगों में ऐसी धारणा है कि यह दोनों की स्थान इस्लामी शासकों के हमले का शिकार हो चुके थे. इस कारण हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा मिलने की रणनीति तैयार की गई. आडवाणी के जोशीले भाषणों ने उन्हें हिंदुत्व का नायक बना दिया.

लालू यादव के आदेश पर हुई थी गिरफ्तारी 

आडवाणी की रथ देश के विभिन्न राज्यों से गुजर रखा था. जिन स्थानों से भी उनका रथ गुजरा वहां नायक के तौर पर उभर कर सामने आए. रथयात्रा का 30 अक्टूबर को अयोध्या में समापन होना था. यहां आडवाणी को मंदिर निर्माण शुरू करने लिए होने वाली कारसेवा में शामिल होना था. आडवाणी की रथ यात्रा जब बिहार के समस्तीपुर पहुंची तो 23 अक्टूबर को उन्हें तत्कालीन सीएम लालू यादव के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया.

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1992 मामले में आज भी चल रहा केस
1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें दो से बढ़कर 120 तक पहुंच चुकी थी. तब बीजेपी सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में अपनी पहचान बना चुकी थी. 1992 में जब अयोध्या आंदोलन परवान चढ़ने लगा तो उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी. उस दौर में कल्याण सिंह को अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा भी देना पड़ा था. 6 दिसंबर 1992 को जब हजारों कारसेवक अयोध्या पहुंचे तो लालकृष्ण आडवाणी लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेता वहां मौजूद थे. चारों और राम के नारे लग रहे थे. देखते देखते भीड़ बेकाबू हुई और बाबरी मस्जिद ढहा दी गई. इस मामले में लालकृष्ण आडवाणी पर आज भी मुकदमा कल रहा है.

हवाला कांड में शामिल होने का लगा था आरोप
1996 में आडवाणी पर हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगा. विपक्ष उनपर उंगली उठाता इससे पहले ही उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इस मामले में आडवाणी बेदाग बरी हुए. करीब 50 साल तक आडवाणी की बीजेपी में नंबर दो की हैसियत रही.

HIGHLIGHTS

  • राममंदिर आंदोलन के लिए रथयात्रा ने दिलाई थी पहचान. सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक निकाली थी रथयात्रा
  • करीब 50 साल तक बीजेपी में नंबर दो की हैसियत पर रहे. अटल बिहारी सरकार में बने उप प्रधानमंत्री
  • राममंदिर का खुलकर किया समर्थन, 1992 के बाबरी मस्जिद मामले में आज की चल रहा केस
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