संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही गुरुवार को दोबारा शुरू होगी और उम्मीद है कि सरकार के एजेंडे में महत्वपूर्ण तीन तलाक विधयेक (Triple Talaq Bill) को चर्चा के लिए रखा जाएगा. दरअसल अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था. बता दें भारत में क़रीब 14 लाख लोग तलाक़शुदा हैं. यह कुल आबादी का क़रीब 0.11 फ़ीसद है, और शादीशुदा (भारत के) आबादी का क़रीब 0.24 फ़ीसद हिस्सा है. जनवरी 2017 से सितंबर 2018 तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए थे. इनमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले और 201 केस उसके बाद के हैं.
- सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है. विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो. इसके बाद सरकार ने सितंबर में अध्यादेश जारी कर दी. इसमें जमानत का प्रावधान जोड़ा गया. अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी.
- अध्यादेश के आधार पर तैयार किए गए नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी. मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं. उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा.
- बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा. आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा. तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं.
तीन तलाक का मतलब
तीन तलाक का कतई ये मतलब नहीं कि एक ही बार में तलाक, तलाक, तलाक बोल दो और रिश्ता खत्म.बजाए इसके तीन तलाक होने में तीन महीने या कुछ ज्यादा वक्त लग जाता है. अगर किसी महिला और पुरुष के रिश्ते में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है, तो काज़ी और गवाहों के सामने पुरुष महिला को पहला तलाक देता है. इसके बाद दोनों करीब 40 दिन साथ गुजारते हैं पर शारीरिक संबंध नहीं बनाते.
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इस बीच अगर उनको लगता है कि उनका फैसला गलत है या जल्दीबाज़ी में लिया गया है तो वे सभी को ये बात बताकर फिर से साथ रह सकते हैं. पर अगर अब भी उनके बीच सब ठीक नहीं होता तो पुरुष उन सभी के सामने फिर दूसरा तलाक देता है और लगभग इतना ही वक्त पति-पत्नी फिर साथ में गुजारते हैं. इस बार भी अगर दोनों के संबंधों में सुधार नहीं होता और अब भी वो अलग रहना चाहते हैं तो फिर तीसरे तलाक के साथ दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं.
इद्दत और हलाला: तलाक के बाद लड़की अपने मायके आती है और इद्दत के तीन महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए पूरा करती है, ताकि अगर लड़की प्रेग्नेंट हो तो ये बात सभी के सामने आ जाए, जिससे उस औरत के 'चरित्र' पर कोई उंगली न उठा सके.
हलाला, यानी 'निकाह हलाला'. शरिया के मुताबिक, अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तब तक शादी नहीं कर सकता जब तक औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी कर तलाक न ले ले. औरत की दूसरी शादी को 'निकाह हलाला' कहते हैं. हालांकि इस प्रथा की आड़ में कई बार औरतों की जबरदस्ती दूसरी शादी कर उसके साथ बलात्कार करवा दिया जाता है, ताकि उस औरत से फिर से पहला पति शादी कर सके. ऐसे कई मामले पिछले कुछ समय में सामने आए हैं.
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इस्लाम में असल हलाला का मतलब ये होता है कि एक तलाकशुदा औरत अपनी मर्जी से किसी दूसरे मर्द से शादी करे. अगर उनका रिश्ता निभ न पाए और दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे-दे या मर जाए तब ऐसी स्थिति में वो पहले पति से फिर निकाह कर सकती है. ये असल इस्लामिक हलाला है. पर इसमें अपनी सहूलियत के हिसाब से काज़ी-मौलवी के साथ मिलकर लोग प्रयोग करते रहे हैं. इसी की एक उपज है- हुल्ला.
हलाला का नया रूप 'हुल्ला': वैसे तो ये हालात, जिसमें पहला पति फिर से अपनी बीवी से शादी करना चाहे, किसी संयोग के चलते ही बन सकते हैं. पर अक्सर होता ये है कि तीन तलाक की आसानी के चलते मर्द अक्सर बिना सोचे-समझे तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल देते हैं. बाद में जब उन्हें गलती का एहसास होता है तो वे अपना संबंध फिर उसी औरत से जोड़ना चाहते हैं.
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Source : News Nation Bureau