Earthquake : तुर्की में मदद पहुंचा रहा भारत, ऐसे दिल जीत रहे हमारे सैनिक

Turkey Syria Earthquake : तुर्की और सीरिया में आए तेज भूकंप से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.8 आंकी गई थी. अबतक तुर्की में 12,873 और सीरिया में 3,162 लोगों की जान चली गई है.

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Deepak Pandey
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Earthquake in Turkey

Earthquake( Photo Credit : File Photo)

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Turkey Syria Earthquake : तुर्की और सीरिया में आए तेज भूकंप से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.8 आंकी गई थी. अबतक तुर्की में 12,873 और सीरिया में 3,162 लोगों की जान चली गई है. इसे लेकर दिल्ली के नजदीक गाजियाबाद में एनडीआरएफ के कैंप में हलचल बढ़ चुकी है, क्योंकि यहीं पर ही इंडियन एयरफोर्स स्टेशन भी है, जहां से लगातार भारत तुर्की के लिए मदद भेज रहा है. ऐसे में तैयारियां की जा रही हैं कि अगर अधिक जवानों की जरूरत पड़ी तो किस तरीके से तुर्की में जाकर मानवता का धर्म विश्व गुरु भारत निभाएगा.

तुर्की में इस वक्त इंडिया की तीन टीम काम कर रही है, जिनके पास तमाम उपकरणों के साथ-साथ अपने वाहन मौजूद हैं, जो ग्राउंड जीरो पर लगातार जान बचाने की कोशिश कर रही है. जब भी भूकंप रिक्टर पैमाने से ज्यादा बड़ा आता है, तब सड़क संचार पूरी तरीके से टूट जाता है. ऐसी परिस्थिति में काम करने के लिए एनडीआरएफ की यूनिट के पास अपना सैटेलाइट कम्युनिकेशन नेटवर्क होता है, जिससे वह न सिर्फ आपस में तालमेल स्थापित कर सकते हैं, बल्कि भारत में एनडीआरएफ हेडक्वार्टर से भी सीधे वीडियो और ऑडियो संपर्क साध सकते हैं.

अधिकांश समय तो भूकंप के बाद मलवा ही मिलता है, लेकिन बहुत बार व्यक्ति ऐसी स्थिति में फंसे होते हैं, जहां पर लोहा लकड़ी की वजह से वह निकल नहीं पाते हैं. ऐसी स्थिति में एनडीआरएफ इस उपकरण का इस्तेमाल करता है. हाइड्रोलिक और बिजली से चलने वाली यह वह आरियां हैं, जो किसी भी मलबे की स्थिति में व्यक्तियों की जान बचाने के लिए प्रयोग में आती है.

यह एक विशेष प्रकार का उपकरण है, जिससे भूकंप आने से कुछ पल के कंपन को महसूस कर लिया जाता है. इसके बाद अगर एनडीआरएफ की टीम तुर्की की किसी क्षतिग्रस्त इमारत में काम कर रहे हैं तो वे तुरंत अपनी रक्षा के लिए बाहर आ जाते हैं इसी तरह के उपकरण को प्रयोग में लेकर दीवार के उस पार भी देखा जा सकता है.

तुर्की में कई स्थानों पर व्यक्ति इतनी बुरी तरीके से मलबे में दबे हुए हैं कि अगर उन्हें सीधा बाहर निकालना जाए तो शायद वह मर ही जाएंगे. यही वजह है कि छोटा ऑपरेशन कई बार मलबे के अंदर ही करना पड़ता है. जिससे अगर व्यक्ति का खून दबने से जहरीला हो गया है, तो उसे बचाते हुए बाहर निकले और जब बाहर निकाला जाए तो व्यक्ति जितना संभव हो उतना सुरक्षित तरीके से निकले वरना मलबे की वजह से उसके अंग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं.

आदर्श रूप से 70mm-70mm-70mm के त्रिकोण से किसी भी व्यक्ति को बाहर निकाला जा सकता है, लेकिन कई बार कुछ व्यक्ति इस तरीके से मलबे में दब जाते हैं कि उनके रिकॉर्ड को बढ़ाना पड़ता है. ऐसे में यह भी दिखाया गया कि एनडीआरएफ किस तरीके से मलबे के अंदर सुराख बनाकर हताहत व्यक्तियों को बाहर निकालने की कोशिश करता है.

तुर्की में मलमास तरीके से गिरा है कि इमारतें रबर में तब्दील हो गई है. इस तकनीकी शब्द का अर्थ होता है कि जब कोई इमारत पेनकेक की तरह भरभरा कर गिर जाए, ऐसे में व्यक्ति के ऊपर हजारों टन का मलबा होता है और उससे मुश्किल से भी नहीं निकाला जा सकता. इस परिस्थिति में एयर बैग का इस्तेमाल किया जाता है जिससे मलबे और हताहत व्यक्ति के बीच में एक क्वेश्चन बन जाता है, जिससे वह निकलने में मददगार साबित होगा.

मैन और मशीन के साथ-साथ डॉग भी आपदा की स्थिति में बेहद मददगार साबित होता है, क्योंकि कुत्तों की सुनने की शक्ति इंसानों की तुलना में कहीं ज्यादा होती है, इसलिए वे जान पाते हैं हल्की सी कंपनी से के अंदर इस मलमल में कोई जिंदा व्यक्ति है या नहीं.

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तुर्की में काम कर रही भारत की तमाम यूनिट को यह साफ तौर पर कहा गया है कि वह रात के समय टेंट में ही विश्राम करेंगे, क्योंकि तापमान माइनस यानी शून्य से नीचे है, इसलिए उनके लिए विशेष प्रकार के टेंट बनाए गए हैं. दरअसल अभी भी तुर्की में भूकंप आने बंद नहीं हुए हैं, इसलिए भारत सरकार की तरफ से s.o.p. जारी करते हुए कहा गया है कि तमाम भारतीय जवान टेंट में सोये, किसी इमारत के अंदर विश्राम ना करें.

तुर्की में इस तरीके का भूकंप आया है कि मेडिकल सुविधाएं भी अस्तव्यस्त हो चुकी हैं, बहुत से अस्पताल भी बर्बाद हो चुके हैं. ऐसी स्थिति में भारतीय जवान तुर्की में हताहत और घायल लोगों के लिए भी मददगार साबित हो रहे हैं. 

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