इस तकनीक के इस्तेमाल से पराली जलाने की समस्या हो सकती है हल

पिछले दो वर्षों से कंपनी रोटरी स्लैशर, आरकेजी 129 गायरो रैक और बीसी 5060 स्माल स्कॉयर बेलर जैसी अपनी मशीनरी के उपयोग का लोगों के बीच प्रचार कर रही है.

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Dhirendra Kumar
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इस तकनीक के इस्तेमाल से पराली जलाने की समस्या हो सकती है हल

इस तकनीक के इस्तेमाल से पराली जलाने की समस्या हो सकती है हल( Photo Credit : फाइल फोटो)

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फार्म मशीनरी विनिर्माता न्यू हॉलैंड ने शुक्रवार को कहा कि बेलर जैसी मशीनरी से धान के पुआल की गांठ बना कर उसका उपयोग करने से भारत में हर साल 15 लाख टन से अधिक पुवाल जलने से बच रही है. कंपनी ने कहा कि पिछले दो वर्षों से, कंपनी रोटरी स्लैशर, आरकेजी 129 गायरो रैक और बीसी 5060 स्माल स्कॉयर बेलर जैसी अपनी मशीनरी के उपयोग का लोगों के बीच प्रचार कर रही है. इन मशीनों से धान के पुआल को इकट्ठा कर उसकी गांठ बनायी जाती है.

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न्यू हॉलैंड ने कहा कि इससे 2017 में पंजाब में पटियाला जिले के कल्लर माजरी इलाके में लगभग 1,000 टन पुआल और फसलों के डंठल की गांठ बांधी गई और 1,500 टन कार्बन डायआक्साइड के उत्सर्जन को रोका गया. वर्ष 2018 में 1,500 टन पुआल एकत्र किया गया था, जिससे 2,250 टन से अधिक कार्बन डायआक्साइड के वायुमंडल में प्रवेश करने से रोक दिया गया. कंपनी ने कहा, ‘ क्षेत्र के किसान पुआल की गांठों को बिजली बनाने वाले स्थानीय बायोमास संयंत्रों को बेच रहे हैं.

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कंपनी ने कहा है कि उसने अक्टूबर 2018 में हरियाणा के कृषि विभाग के अनुरोध पर एक दूसरी पुआल प्रबंधन परियोजना शुरू की. इसमें डंठल को ऊर्जा स्रोत में बदलने के साथ-साथ पशु आहार और खाद बनाने का भी तरीका अपनाया जा रहा है. न्यू हॉलैंड के फसल समाधान विभाग के व्यवसाय प्रमुख, संदीप गुप्ता ने कहा, ‘‘ पुआल प्रबंधन को व्यापक रूप से अपनाने से भारत की वायु गुणवत्ता में बड़ा एवं सकारात्मक बदलाव आ सकता है. उन्होंने कहा कि न्यू हॉलैंड बेलर्स मशीनों के माध्यम से भारत में हर साल 15 लाख टन से अधिक पुआल और फसल अवशेष को जलाने से बचाया जा रहा है, इससे किसानों को अतिरिक्त आय भी हो रही है.

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