पिछले महीने पालघर (Palghar) में हुई मॉब लिंचिंग के दौरान साधुओं की हत्या का मामला तूल पकड़ता ही जा रहा है. वीएचपी ने शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) को इस बारे में अपना पक्ष रखते हुए 'महाराष्ट्र राज्य के पालघर के पास लगभग दो सौ लोगों की भीड़ द्वारा दो हिंदू सन्यासियों और उनकी कार के चालक की हत्या' के विषय में पत्र लिखा है. वीएचपी ने रामनाथ कोविंद को लिखा कि जैसा कि आप इस बात को व्यापक रूप से जानते हैं कि 16 अप्रैल की रात महीने जूना अखाड़ा से संबंधित दो हिंदू संन्यासी और जिस वाहन में वे यात्रा कर रहे थे उसके चालक को महाराष्ट्र राज्य के जिला पालघर, में तालुका दहानु, गांव में लगभग दो सौ लोगों की जानलेवा भीड़ ने मिलकर पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. ये संत गुजरात के किसी स्थान पर एक अन्य संत के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए जा रहे थे.
ऐसा बताया जाता है कि जब ये दोनों संत पालघर के पास गढ़ चिनचेल गांव के पास से गुजर रहे थे तभी वहां के स्थानीय ग्रामीणों ने उन सन्यासियों पर अचानक से हमला बोल दिया था, जब इन संतों को लगा कि इन ग्रामीणों के इरादे उनके प्रति अच्छे नहीं है तब वो पास की पुलिस चौकी में शरण लेने के लिए भागे. यह वहां की वन चौकी थी. हमलावरों की भीड़ ने वहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और लाठी, डंडों और धारदार हथियारों को लेकर वन चौकी का घेराव कर दिया और इन संतों को सौंप देने की मांग करने लगे. थोड़ी देर में वहां सशस्त्र पुलिसकर्मी भी पहुंचे, वहां के सरपंच को भी इस भीड़ ने जगह छोड़ने पर मजबूर किया. इसके बाद जब स्थिति नियंत्रण के बाहर हो गई तब पुलिसवालों ने भी डर कर इन संतों को भीड़ के हवाले कर दिया और फिर इस भीड़ ने उनकी निर्दयता पूर्वक हत्या कर दी.
घटना को स्थानी प्रशासन ने शांत करने की कोशिश की
इस घटना को दो-तीन दिनों के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा शांत करने की कोशिश की गई लेकिन जब इस हत्या का भयावाह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तब पूरे देश में इस घटना को लेकर देशवासियों का आक्रोश बढ़ गया. इस घटना को मॉब लिंचिंग का नाम देते हुए कार्रावाई की गई साथ ही इसे अफवाहों की वजह से हुई घटना का परिणाम बताया गया. इस घटना को लेकर ये अफवाह उड़ाई गई कि इस क्षेत्र में बच्चों को पकड़ने वाले घूम रहे हैं जिसकी वजह से पूरे क्षेत्र में ये गलतफहमी हो गई थी कि ये लोग बच्चे पकड़ने वाले हैं और इस क्षेत्र में भी बच्चों को उठाने के लिए आए हैं. चूंकि उस समय भी उस इलाके में एक भी बच्चे के अपहरण की खबर नहीं आई थी इसलिए यह संभव नहीं था कि इतनी बड़ी संख्या में लोग रात के समय भी अचानक से इकट्ठा हो जाते और बेरहमी से इन ती लोगों की हत्या कर देते.
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पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में तीन लोगों की हत्या गंभीर मामला
जाहिर है कि, ये परिस्थितियां उस इलाके के हिंदुओं को आतंकित करने की साजिश की थीं ताकि इलाके में हिंदू विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा सके. पुलिस के साथ दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट में यह भी आरोप भी लगाया गया है कि एक साजिश के तहत भीड़ को बाहर किया गया था. पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में सशस्त्र भीड़ द्वारा तीन निर्दोष लोगों की हत्या एक गंभीर मामला है लेकिन महाराष्ट्र राज्य इसे गलतफहमी के कारण किए गए साधारण अपराध के रूप में मान रही है. इस घटना के बाद पुलिसकर्मियों के खिलाफ केवल विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है और इस तथ्य के बावजूद उनके खिलाफ कोई अपराध का मामला अभी तक दर्ज नहीं किया गया है. जैसा कि घटना के वीडियो में पुलिसकर्मियों को पीड़ितों को भीड़ को सौंपते हुए देखा गया है उस हिसाब से तो ऐसा लगता है कि पुलिस भी उनके साथ मिल गई थी.
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इस क्षेत्र में एक दशक से भी ज्यादा पहले से हिंदू विरोधी गतिविधियां
क्षेत्र के स्थानीय निवासियों का मानाना है कि यह घटना किसी गलतफहमी के चलते नहीं हुई बल्कि ये हिंदू संन्यासियों की सुनियोजित हत्या के तहत किया गया अपराध है, क्योंकि वे कन्नड़वासी थे. इस क्षेत्र में कुछ गैर-राजनीतिक और राजनीतिक वामपंथी संगठनों जैसे कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी (CPM) और ईसाई मिशनरियों द्वारा इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिंदू विरोधी प्रचार किया जा रहा है. वे स्वाभाविक रूप से, हिंदू सन्यासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने रास्ते में मुख्य बाधा समझते थे. यह पहला मौका नहीं है जब इस क्षेत्र में हिंदुओं के खिलाफ ऐसी गतिविधियां देखीं गई हों. दशकों से इस क्षेत्र ने हिंदू विरोधी गतिविधियों को देखा है. स्थानीय विधायक सीपीएम के हैं, जिनकी तालुका में बड़ी संख्या है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का भी इस क्षेत्र में बड़ा प्रभाव है और उसे भाजपा और शिवसेना जैसी पार्टियों के खिलाफ ईसाई मिशनरियों का समर्थन प्राप्त है.