182 मीटर की सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति अगर देश की राजधानी दिल्ली में बनती तो स्मॉग के दौर में क्या नजर आ पाती? सोशल मीडिया में भले ये सवाल मजाक में ही उठ रहा हो, लेकिन बात वाजिब है. क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में सांसों पर मानों आपातकाल लग चुका है. एयर क्वालिटी बेहद खराब है. हालात बेकाबू हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक्शन प्लान लागू किया जा चुका है. कंस्ट्रक्शन पर रोक है. पुराने वाहनों को जब्त किया जा रहा है. बिगड़ते हालात की वजह पराली को भी बताया जा रहा है, जिसके जलाने पर अदालत ने तो रोक लगाई है. लेकिन जलना जारी है. सरकारी जुर्माने और सरकारी मदद के दावे मानों बेमानी हैं.
अदालत ने रोक त्यौहारों पर पठाखों के जलाने पर भी लगाई है, लेकिन सवाल क्रियान्वयन पर है. वैसे अदालत ने पिछली बार दिवाली पर दिल्ली में पटाखे बेचने पर रोक लगाई तो मामला धर्म पर हमले से जोड़ दिया गया.
हालांकि बीते साल भी हालात ऐसे ही थे. स्कूल तक बंद करने पड़े थे. तब दिल्ली में प्रदूषण मानक से तीस गुना ज़्यादा था. हम रोज़ 50 सिगरेट के बराबर का धुआं अपने अंदर भर रहे थे. हालात आज भी कुछ ऐसे ही बनते दिख रहे हैं.
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डब्लूएचओ के मुताबिक वायु प्रदूषण से हर साल दुनियाभर 70 लाख लोग मारे जाते हैं यानि हर दिन 19 हजार मौत! प्रदूषण के चलते भारत में सालाना 25 लाख मौत हो रही हैं! हर मिनट 5 मौत! ऐसे में सवाल है कि क्या हालात ऐसे ही बने रहेंगे? क्या देश की राजधानी दिल्ली गैस चैम्बर ही बनी रहेगी? क्या समय रहते जागने से स्थितियां सुधर सकती थीं? हालात के लिए जिम्मेदार कौन? और जबावदेही अगर तय नहीं हुई तो आने वाले सालों में तस्वीर कैसी होगी?
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Source : anurag dixit