सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के एक वकील की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विवादास्पद कृषि कानूनों पर चर्चा करने के लिए अब तक आंदोलनकारी किसानों से नहीं मिले हैं. न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन के साथ ही प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस. ए. बोबड़े और ने कहा, "हम प्रधानमंत्री को जाने के लिए नहीं कह सकते. वह यहां पर पार्टी नहीं हैं.
अधिवक्ता एम. एल. शर्मा ने कहा कि किसानों ने मंगलवार को उनसे संपर्क किया और कहा कि वे कानूनों के खिलाफ किसानों की शिकायतों को सुनने के लिए अदालत द्वारा नियुक्त समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे. वकील ने कहा कि इसके बजाय वे कानूनों को निरस्त कराना चाहते हैं. शर्मा ने कहा, किसान कह रहे हैं कि कई लोग चर्चा के लिए आए हैं, लेकिन मुख्य व्यक्ति, प्रधानमंत्री ही नहीं आए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि कृषि मंत्री पहले ही किसानों से मिल चुके हैं. शर्मा ने पलटवार करते हुए कहा, कृषि मंत्री के पास निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं है. जो निर्णय लेंगे, वह प्रधानमंत्री हैं.
शीर्ष अदालत ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया और जोर देकर कहा कि अदालत यह सुनने की इच्छुक नहीं है कि किसान समिति में नहीं जाएंगे.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम समस्या को हल करना चाह रहे हैं. यदि आप अनिश्चित काल तक आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं. जब शर्मा ने कहा कि कॉर्पोरेट किसानों के हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, तो शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सुनिश्चित करेगा कि नए कृषि कानूनों के तहत कोई खेत नहीं बेचा जाए.
Source : IANS