महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच चुका है .सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से बेशक शिंदे कैंप ने राहत महसूस की हो, लेकिन इस सियासी लड़ाई का हल क्या हो सकता है और संविधान इसको लेकर क्या कहता है. इसपर न्यूज नेशन संवाददाता मोहित बक्शी ने लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के सचिव रहे संविधान विशेषज्ञ एस के शर्मा से बात की. महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट पर ज कुछ उन्होंने कहा वह जानना हम सभी के लिए बहुत ही जरूरी है. पेश है संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा से बातचीत के मुख्य अंश.
सवालः जिस तरह की स्थिति बनी है, उसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्या अर्थ है और इससे क्या हो सकता है?
जवाबः इस आदेश के बाद जो 16 बागी विधायक हैं, जिनको लेकर नोटिस जारी किया गया था, वह तो सुरक्षित हो गए हैं. अब उन पर आगे की कार्रवाई नहीं हो सकती. बाकी के विधायक शिंदे गुटके जिनको नोटिस नहीं मिला है, वह विधायक भी सुरक्षित हो गए हैं, क्योंकि यह मामला सब- जूडिस हो गया है. इसलिए अब शिवसेना आगे नहीं बढ़ेगी. दूसरी बात डिप्टी स्पीकर के हाथ बांध दिए हैं कि आप आगे कोई और एक्शन नहीं लेंगे, क्योंकि संविधान के संज्ञान में ये बात आ गई है कि उनके खिलाफ नोटिस आया हुआ है और ये उद्धव की शिवसेना के खिलाफ और एकनाथ शिंदे के हक में गया है. एक डिसक्वालिफिकेशन वाला नोटिस और डिप्टी स्पीकर के मामले के अलावा अभी कोई टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं की है, तो इसका अर्थ है कि राज्यपाल के हाथ इस मामले में पूरी तरह से खुले हुए हैं. अब वह जो चाहे कार्यवाही कर सकते हैं. वह फ्लोर टेस्ट के लिए मुख्यमंत्री उद्धव को कह सकते हैं या फिर असम रेडिस ऑल करने के लिए कानून व्यवस्था की परिस्थिति को देखते हुए निर्णय ले सकते हैं.
सवालः अजय चौधरी की नियुक्ति पर क्या निर्णय लिया जा सकता था, अल्पमत की सरकार क्या कड़ा निर्णय ले सकती है?
जवाबः पार्टी ने किसको क्या पद दिया यह विषय है, लेकिन पार्टी का व्हिप एक आदेश देता है अपने विधायकों को कि आप यह करें या यह न करें. लेकिन, कुल मिलाकर सवाल यह है कि यह व्हिप कब जारी होता है. ये व्हिप तब जारी होता है, जब सदन चल रहा हो और जब वोटिंग होती है. ये इस बात पर नहीं होता कि आप पार्टी कार्यालय में आइए. आप इतने बजे होटल में पहुंचिए. अगर आप सदन के भीतर व्हिप का पालन नहीं करते हैं और व्हिप के खिलाफ वोट करते हैं तो आपकी सदस्यता जा सकती है. उस स्थिति में शिकायत स्पीकर के पास जाती है.
सवालः सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अर्थ यह निकाला जाए कि अब भी सदन बुलाने का और फ्लोर टेस्ट कराने का अधिकार राज्यपाल के पास है?
जवाबः सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को नहीं छुआ है और राज्यपाल की स्थिति 10 दिन पहले वाली ही है. राज्यपाल अब भी आदेश दे सकते हैं कि आपने (उद्धव ठाकरे) मुझे राय दी है कि विधानसभा भंग की जाय या नहीं. मैं आपका आदेश नहीं मानता और आप फ्लोर पर साबित कीजिए कि आपके पास बहुमत है.,राज्यपाल ये भी कह सकते हैं कि अगर कानून व्यवस्था बिगड़ जाती है तो राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं.
सवालः अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो तमाम विधायक वोटिंग के लिए पहुंचेंगे, तो क्या यह 16 विधायक भी वोटिंग करने का अधिकार रखते हैं?
जवाबः यह 16 विधायक भी और बाकी सभी विधायक जो शिंदे के साथ बाहर गए हैं, उनकी स्थिति वही है, जो पहले दिन थी. यानी उनके पास पूरी ताकत है कि वह सदन में वोट कर सकें.
सवालः आपने व्हिप का जिक्र किया, अगर शिंदे गुट अगर शिवसेना के व्हिप के खिलाफ वोट करता है, क्योंकि नंबर में ये गुट ज्यादा है तो क्या उन्हें स्वतंत्र गुट माना जाएगा या इनका मर्जर जरूरी है.
जवाबः 2003 से पहले किसी भी एक राजनीतिक दल के दो तिहाई सदस्य बाहर आ जाते थे तो उस टूटन को वैध माना जाता था. तब उनके सदस्य नहीं जाती थी. अब यह शब्द संविधान की सूची से हट गया है और उसकी जगह शब्द आ गया है मर्डर. लेकिन ये मर्जर दो तिहाई सदस्य के साथ होना चाहिए और किसी पार्टी के साथ मर्ज हो जाता है तो उसे वैध माना जाता है. जैसा शिंदे दावा कर रहे हैं कि उनके पास दो तिहाई विधायक है और उसे शिवसेना A या शिवसेना B कहते हैं और दूसरी पार्टी में विलय कर देते हैं चाहे वो एमएनएस हो या भाजपा तो उसे वैध माना जाएगा फिर वोटिंग पर कोई बंधन नहीं रहेगा.
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शिंदे गुट हुए सुरक्षित
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डिप्टी स्पीकर हुए बेबस
- राज्यपाल फ्लोर टेस्ट कराने के लिए हैं स्वतंत्र
Source : Mohit Bakshi