Union Budget 2024 : देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया है. इस दौरान उन्होंने एंजल टैक्स को लेकर बड़ा ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि अब एंजल टैक्स खत्म कर दिया जायेगा. बता दें कि एंजल टैक्स (Angel Tax) भारत में स्टार्टअप्स के लिए एक बड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा था, जो पहली बार 2012 में पेश किया गया था. ये टैक्स स्टार्टअप्स और उनके एंजल निवेशकों के लिए काफी समस्याएं उत्पन्न करता था. इस आर्टिकल में हम एंजल टैक्स के बारे में विस्तार से जानेंगे कि ये कब लाया गया था और इसके प्रभाव क्या थे.
क्या होता है एंजल टैक्स?
एंजल टैक्स वह टैक्स है जो एक प्राइवेट कंपनी को उसके जारी किए गए शेयरों के मूल्यांकन के आधार पर लागू होता है, जब वह अपने एंजल निवेशकों से धन जुटाती है. अगर शेयरों का जारी मूल्य कंपनी के उचित बाजार मूल्य से अधिक होता है, तो ये अतिरिक्त राशि कंपनी की आय मानी जाती है और उस पर टैक्स लगाया जाता है. ये टैक्स आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 56(2)(viib) के तहत आता है.
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कब लाया गया एंजल टैक्स?
एंजल टैक्स 2012 में लाई गई थी ताकि काले धन को सफेद (मनी लॉन्ड्रिंग) बनाने की ट्रेंड को रोका जा सके. सरकार का मानना था कि कुछ लोग अपनी गैर-कानूनी आय को स्टार्टअप्स में निवेश करके वैध बना रहे थे. इस टैक्स का उद्देश्य ऐसे निवेशों पर निगरानी रखना और उन्हें रोकना था. सरकार इसे अच्छी मंशा से लेकर आई थी लेकिन इससे स्टार्टअप्स को काफी परेशानी हुई.
स्टार्टअप्स को क्या हो रही थी परेशानी?
हालांकि, कुछ सालों के बाद एंजेल टैक्स का प्रभाव दिखाई देने लगा. स्टार्टअप्स कंपनियों को पहले से ही कैपिटल जुटाने में कठिनाई होती थी. एंजल टैक्स के आने के बाद ये प्रक्रिया और जटिल बन गई. टैक्स अधिकारियों द्वारा शेयर मूल्यांकन की अलग-अलग व्याख्या के कारण स्टार्टअप्स के लिए भविष्य की योजनाएं बनाना मुश्किल हो गया. भारतीय स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश भी प्रभावित हुआ, क्योंकि विदेशी निवेशक अनिश्चितता से बचना चाहते थे. जिसके कारण तमाम स्टार्टअप्स को भारी नुकसान हुआ, जिसके चलते कई सालों से इसका विरोध किया जा रहा था.
Source : News Nation Bureau