राजधानी दिल्ली में स्मॉग की मार से बचने के लिए केजरीवाल सरकार कुछ विकल्प तलाश रही है। जिसमें से स्कूलों की छुट्टी, जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक, कूड़ा जलाने पर रोक, बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन पर पाबंदी आदि के साथ साथ सरकार कृत्रिम बारिश पर भी विचार कर रही है और इसके लिए जल्द ही केन्द्र से बात की जाएगी।
सरकार क्यों लेगी कृत्रिम बारिश की मदद
दरअसल कृत्रिम बारिश से हवा में तैरते कण को जमीन पर बैठाने में मदद मिलती है, जिससे धुंध का असर कम किया जा सकता है। दिल्ली सरकार स्मॉग को कम करने के लिए इसकी मदद केन्द्र सरकार से लेगी। कृत्रिम बारिश को क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है।
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क्या होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश का मतलब उस प्रक्रिया से है जिसके जरिये बादलों की भौतिक अवस्था में आर्टिफशल तरीके से बदलाव लाया जाता है जो इसे बारिश के अनुकूल बनाता है। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। बादल पानी के बहुत छोटे-छोटे कणों से बने होते हैं। जो कम भार की वजह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने में पूरी तरह सक्षम होते हैं। कभी-कभी किसी खास परिस्थितियों में जब ये कण इकट्ठे हो जाते हैं, तब इनका आकार और भार अच्छा खासा बढ़ जाता है। तब ये ग्रेविटी के कारण धरती पर बारिश के रूप में गिरने लगते हैं।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश करवाने के लिए छोटे छोटे रॉकेट और विमानों का इस्तेमाल किया जाता है। रॉकेट की मदद से 20 किलोमीटर के दायरे में बारिश वाले बादलों को डॉप्लर रडार से पहले खोजा जाता है। उन बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का फव्वारा मारा जाता है। यह केमिकल फव्वारा मारने के बाद बादलों से रसायनिक क्रिया करता है। जिससे पानी की बूंदे गतिशील हो जाती हैं। उसके बाद बारिश होने लगती है।
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कृत्रिम बारिश का भारत में प्रयोग
तमिलनाडु सरकार ने 1983 में सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पहली बार इसका प्रयोग किया था। 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने भी इसे अपनाया। 2003 में महाराष्ट्र सरकार भी इसकी मदद ले चुकी है। 2009 में ग्रेटर मुंबई नगर निगम प्रशासन के कृत्रिम बारिश का प्रयोग असफल होने से 48 करोड़ रुपये की हानि हुई।
Source : News Nation Bureau