3 दिसंबर यानी कल 4 राज्यों का जनादेश आने वाला है, जिसमें तय हो जाएगा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में किसकी सरकार बनेगी. अब नतीजे कल आने वाले हैं तो ऐसा भी हो सकता है कि अगर किसी राज्य में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में जब कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने होंगी तो ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि (हॉर्स ट्रेडिंग) खरीद-फरोख्त का खेल देखने को मिल सकता है. अगर ऐसा हुआ तो हॉर्स ट्रेडिंग का ये शब्द पहली बार सुनने को नहीं मिलेगा. इससे पहले भी कांग्रेस ने कई राज्यों में सरकार बनाने के लिए बीजेपी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगा चुकी है. अब सवाल है कि आखिर ये हॉर्स ट्रेडिंग होता क्या है?
आखिर हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब क्या होता है?
'हॉर्स ट्रेडिंग' यदि आप इसका शाब्दिक अर्थ जानने का प्रयास करते हैं, तो हॉर्स यानी घोड़ा और ट्रेडिंग यानी खरीद-फरोख्त, अब अगर पूरा अर्थ देखें तो इसका सटीक अर्थ घोड़ों की खरीद-फरोख्त. लेकिन सवाल है कि यहां तो घोड़ों की खरीद-बिक्री नहीं हो रही है यहां तो नेताओं की खरीद-फरोख्त की बात हो रही है. अगर हम कैम्ब्रिज डिक्शनरी के पन्ने पलटें तो पता चलेगा कि हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब दो पक्षों के बीच एक चतुराई समझौता होता है, जिसमें दोनों को फायदा होता हो. ऐसे समझें कि अगर किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए संख्या बल की जरुरत है तो वो एक जीते हुए नेता को सरकार बनाने के लिए रुपये की ऑफर देती है और बदले में पार्टी को सरकार बनाने के लिए संख्यात्मक ताकत मिलती है.
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पहली बार कब शब्द ये आया सामने?
तो आप भी ये जान लें कि 'हॉर्स ट्रेडिंग' शब्द का इस्तेमाल पहली बार कब हुआ था? इतिहासकारों के मुताबिक इस शब्द का यूज 1820 में हुआ था लेकिन उस समय इस शब्द का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था. उस समय, इस शब्द का इस्तेमाल जो घोड़े पालते थे और घोड़े खरीदते थे. उनमें कुछ बिचौलिए यानी व्यापारी भी थे. जो एक जगह से घोड़े खरीदकर दूसरी जगह कुछ कमीशन लेकर बेच देते थे . लेकिन समय के साथ इस ट्रेंडिंग में हेराफेरी का खेल खेला जाने लगा. घोड़े बेचने वाले व्यवसायी या बिचौलिये अधिक लाभ कमाने के लिए कुछ अच्छी नस्ल के घोड़ों को छिपा देते थे. इन्हें बेचने के लिए हथकंडे अपनाकर अधिक पैसे ऐंठते थे.
Source : News Nation Bureau