केंद्र सरकार ने 'एक देश-एक चुनाव' के लिए एक कमेटी बनाई है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी में 8 सदस्यों को शामिल किया गया है. इसमें अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी समेत कानून विशेषज्ञ और कई एक्सपर्ट्स शामिल है. हालांकि, इसमें राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को शामिल नहीं करने के विरोध में अधीर रंजन चौधरी ने इस कमेटी से खुद को अलग कर लिया है. इधर मोदी सरकार के इस प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है.
राहुल गांधी ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' वाले विचार को देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है . राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, "इंडिया, जोकि भारत है, यह राज्यों का एक संघ है. 'वन नेशन-वन इलेक्शन' का आइडिया संघ और उसके सभी राज्यों पर हमला है."
केंद्र सरकार ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लेकर जो कमेटी बनाई है, उसमें गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आज़ाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश सॉल्वे और संजय कोठारी को शामिल किया है. केंद्र सरकार ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया है.
क्यों लाया गया वन नेशन वन इलेक्शन का प्रस्ताव
दरअसल, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष और 2015-19 तक नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने रिपोर्ट जारी तैयार की है. इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि एक भी साल ऐसा नहीं गुजरा है जब किसी राज्य में विधानसभा या लोकसभा के लिए चुनाव न हुआ हो. इसमें इस बात की भी संभावना जताई गई है कि यह स्थिति आगे भी बनी रह सकती है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होने से बड़े पैमाने पर धन, सुरक्षाबलों और मैनपावर की इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन जरूरी हो जाता है. क्योंकि एक साथ चुनाव कराने से सुरक्षा बलों की तैनाती से लेकर बड़े पैमाने पर धन की बर्बादी रुकेगी. बताते चलें कि 1967 तक देश में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होते आए हैं. बाद में चलकर चुनाव अलग-अलग होने लगे.
Source : News Nation Bureau