रामपाल और उसके समर्थकों को सतलोक आश्रम में हुई मौत के मामले में उम्रकैद की सज़ा मुकर्रर करते हुए एडिशनल सेशन जज डी आर चालिया ने अपने फैसले में कई अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर की कैटेगरी में नहीं आता लेकिन अदालत में पेश किए रिकॉड से ये भी साफ है कि रामपाल ने बाकी दोषियों के साथ मिलकर साजिश रची और अपने भक्तों को भी नहीं बख्शा. लिहाजा वो किसी दया का भी हक़दार नही है.
रामपाल दया का हक़दार नही
दूसरे शब्दों में एक ऐसा इंसान जिसका मानवता के लिए कोई सरोकार नहीं है, जिसके स्वभाव में दया नही है, वो कोर्ट से भी दया का हकदार नहीं है.लिहाज कोर्ट उसके इस बर्बर कृत्य के लिए जो न केवल समाज के खिलाफ है, बल्कि निर्दोष लोगो के विश्वास को छलता है, उम्र कैद की सज़ा मुकर्रर करता है.
स्वघोषित संतो की हिंसा पर लगाम लगाना सरकार की जिम्मेदारी
जज डी आर चालिया ने अपने फैसले में कहा कि स्वघोषित संतो को हिंसा करने इजाज़त नहीं दी जा सकती. ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो तमाम कदम उठाये ताकि बार बार होने वाली हिंसा से नागरिकों को बचाया जा सक. सरकार लोगों की वेदना को अनसुना नहीं कर सकती.
हिंसा को बढ़ावा देने वाले ऐसे 'गॉड मेन' के लिए सख्त सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए जो ऐसी हिंसा को रोक पाने में नाकाम रहते है
देश में फर्ज़ी स्वयंभू सन्तो की भरमार
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारत में स्वयंभू सन्तो की सँख्या बढ़ती जा रही है. वो पहले ख़ुद को आध्यात्मिक गुरु बताते है, उसके बाद भगवान बताने लगते है, और इसी क्रम में वो अकूत धन संपदा लूटते है और बच्चों, महिलाओं का अपना शिकार बनाते है
हाल के दिनों में ये सारे स्वयंभू संत सिर्फ ग़लत वजहों से चर्चा में है. प्रोफेशन से इंजीनियर रामपाल के पास लग्ज़री गाड़ियों का काफिला है, 12 एकड़ में उसका आश्रम फैला है.
रामपाल के शिष्यों ने उसे भगवान की तरह माना, पर उसने विश्वास घात किया. सतलोक आश्रम जैसे आध्यत्मिक स्थल के संचालक का ये कृत्य चिर काल से चले आ रहे इस देश के सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक संस्थाओं की गरिमा को नुकसान पहुंचता है.
Source : Arvind Singh