प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को स्वामी विवेकानंद के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि क्या खाएं और क्या नहीं खाएं, यह बहस हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है।
पीएम मोदी ने 1893 में स्वामी विवेकानंद के शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिए भाषण की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में यह बात कही।
पीएम ने कहा कि हम समय के अनुसार बदलाव के पक्ष में हैं। पीएम ने स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्म संसद में भाषण के वक्त दुनिया में भारत को सांप, संपेरों और जादू टोना करने वालों के रूप में देखा जाता था।
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पीएम मोदी के अनुसार, 'एकादशी को क्या खाएं, पूर्णिमा को क्या नहीं खाएं, इसी के लिए हमारी चर्चा होती थी। लेकिन स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को स्पष्ट किया कि क्या खाएं, क्या न खाएं। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता, यह सामाजिक व्यवस्था के तहत आ सकता है, लेकिन संस्कृति में शामिल नहीं हो सकता।'
पीएम ने कहा, 'हम तो आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पंडित: को मानने वाले लोग हैं अर्थात ऐसे लोग जो सभी में अपना ही रूप देखते हैं।'
पीएम मोदी ने कहा, 'हमारे यहां भिक्षा मांगने वाला भी तत्वज्ञान से भरा होता है और जब कोई उसके सामने आता है, तब वह कहता है कि देने वाले का भी भला, नहीं देने वाले का भी भला।'
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पीएम मोदी के मुताबिक स्वामी विवेकानंद उस दौर में भी कृषि में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। मोदी ने कहा, 'महज कुछ शब्दों से एक भारतीय युवा ने दुनिया जीत ली थी और इसकी एकता की शक्ति को दुनिया को दिखाया था।'
HIGHLIGHTS
- स्वामी विवेकानंद के भाषण की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर पीएम मोदी का भाषण
- मोदी ने कहा- हम बदवाल के पक्ष में, हम ऐसे लोग जो सभी में अपना रूप देखते हैं
- 'एकादशी को क्या खाएं और पूर्णिमा को क्या नहीं खाएं, इसके लिए होती थी चर्चा'
Source : News Nation Bureau