दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन, एलजी अनिल बैजल या सीएम अरविंद केजरीवाल? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन है, एलजी अनिल बैजल या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज ये तय कर देगी। दिल्ली सरकार-केंद्र अधिकार विवाद पर सुबह साढ़े दस बजे फैसला आएगा।

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kunal kaushal
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दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन, एलजी अनिल बैजल या सीएम अरविंद केजरीवाल? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

उपराज्यपाल अनिल बैजल और अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

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दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन है, एलजी अनिल बैजल या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज ये तय कर देगी। दिल्ली सरकार-केंद्र अधिकार विवाद पर सुबह साढ़े दस बजे फैसला आएगा।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए, एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल है। अगस्त 2016 में दिये गए फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है, इसलिए, यहां राष्ट्रपति के प्रतिनिधि यानी उपराज्यपाल की मंजूरी से ही फैसले लिए जा सकते हैं।

दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दिल्ली सरकार का कहना है कि हाई कोर्ट ने संविधान की गलत व्याख्या की है। इस व्याख्या से दिल्ली सरकार पूरी तरह अधिकारहीन हो गयी है।

क्या है दिल्ली सरकार की दलील

दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकीलों की टीम ने जिरह की इसमें पी चिंदबरम, इंदिरा जयसिंह, गोपाल सुब्रमण्यम ,राजीव धवन जैसे बड़े नाम शामिल थे। दिल्ली सरकार ने दलील दी कि दिल्ली का दर्जा दूसरे केंद्रशासित क्षेत्रों से अलग है। संविधान के अनुच्छेद 239 AA के तहत दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया है। विधानसभा को फैसला लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

गोपाल सुब्रमण्यम ने जिरह करते हुए कहा कि एलजी के जरिए केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की तमाम कार्यकारी शक्तियों को पंगु बना दिया है। सरकार के हर फैसले में एलजी रोड़ा अटका रहे हैं। एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार (दिल्ली सरकार) जनादेश के मुताबिक काम कर सके, इसके लिए जरूरी है कि आर्टिकल 239AA की समग्र व्याख्या हो। एलजी के रवैये के चलते राजधानी में कोई भी अधिकारी मुख्यमंत्री और मंत्रियों के निर्देश का पालन नहीं कर रहा है

केंद्र सरकार की दलील

केंद्र की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने जिरह की।उन्होंने कहा कि संविधान में ये स्पष्ट है कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है। इसे राज्य की तरह नहीं देखा जा सकता।

दिल्ली को अलग से कार्यपालिका की शक्ति नहीं दी गई है। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि उपराज्यपाल की भूमिका यहां सबसे अहम है। ऐसा सोचना गलत है कि दिल्ली में केंद्र के पास सिर्फ जिम्मेदारियां हैं, अधिकार नहीं। दिल्ली और पुदुच्चेरी में विधानसभा है, जो राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा लेती है। लेकिन यहां मंत्रिमंडल के निर्णय ही नहीं, उसकी चर्चा के एजेंडे की भी जानकारी एलजी को दी जानी ज़रूरी है।

तुषार मेहता ने दिल्ली सरकार की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि ये गलत छवि बनाई जा रही है कि दिल्ली सरकार को एलजी काम नहीं करने दे रहे। पिछले 3 साल में आई 600 से ज़्यादा फाइलों में से एलजी ने सिर्फ 3 को राष्ट्रपति के पास भेजा। वो भी इसलिए क्योंकि वो पुलिस से जुड़ी थीं और पुलिस केंद्र के तहत हैं। बाकी फाइलों का निपटारा एलजी सचिवालय में ही हो गया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने कई अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा पहली नज़र में उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रमुख नज़र आते हैं। लेकिन रोज़ाना के कामकाज में उनकी दखलंदाज़ी से मुश्किल भी आ सकती है।

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कोर्ट का मानना था कि आर्टिकल 239AA के तहत उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के कई फैसलों से असहमति रखने का अधिकार रखते है। पब्लिक आर्डर, ज़मीन, कानून व्यवस्था जैसे विषयों पर उन्हें कहीं ज़्यादा अधिकार हासिल है, लेकिन दिल्ली के लोगों के हित मे राज्य सरकार और एलजी को मिल कर काम करना चाहिए। एलजी दिल्ली सरकार की फाइलों को लंबे समय तक लटका नही सकते।

मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल को फाइलों पर कारण सहित जवाब देना चाहिये और ये एक वाज़िब समयसीमा के अंदर हो जाना चाहिए। अगर किसी मसले को लेकर उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच मतभेद है, तो उसे राष्ट्रपति के पास भेज जाना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये टिप्पणी उस वक्त की थी, जब दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कई जनकल्याणकारी योजनाओं की फाइल उपराज्यपाल को भेजी गई है, लेकिन लंबा वक्त गुजरने के बावजूद उन पर अभी तक फैसला नहीं लिया गया है।

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Source : News Nation Bureau

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