हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण पर WHO की अस्थायी रोक, भारतीय विशेषज्ञों ने दी ये प्रतिक्रिया

कोविड-19 के प्रायोगिक उपचार में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के वैश्विक परीक्षण पर अस्थायी रूप से रोक लगाने के WHO के फैसले से महामारी से निपटने की रणनीति पर पड़ सकने वाले प्रभावों के बारे में भारत में चिकित्सकों के अलग-अलग विचार हैं.

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Deepak Pandey
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कोरोना वायरस( Photo Credit : फाइल फोटो)

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कोविड-19 (Covid-19) के प्रायोगिक उपचार में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (कुनैन की गोलियां) के वैश्विक परीक्षण पर अस्थायी रूप से रोक लगाने के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के फैसले से महामारी से निपटने की रणनीति पर पड़ सकने वाले प्रभावों के बारे में भारत में चिकित्सकों के अलग-अलग विचार हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि डब्ल्यूएचओ के फैसले के बाद, देश के अस्पतालों को कोविड-19 मरीजों के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) और क्लोरोक्वीन का उपयोग बंद करना होगा, जबकि अन्य का मानना है कि वैश्विक स्वास्थ्य संस्था के फैसले का अनुपालन करना भारत के लिये बाध्यकारी नहीं है.

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शहर के फेफड़ा सर्जन डॉ अरविंद कुमार ने कहा कि लांसेट (जर्नल) के अध्ययन में पाया गया है कि जिन लोगों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या क्लोरोक्वीन या, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साथ-साथ एजीथ्रोमाइसिल (एंटीबायोटिक) या क्लोरोक्वीन दिया गया, उनकी दिल की धड़कनें अनियमित हो जाने के चलते मृत्यु दर अधिक होने का खतरा बढ़ा गया. यह अध्ययन 15,000 रोगियों पर किया गया,जिनकी हालत की तुलना उन रोगियों से की गई जिन्हें ये दवाइयां नहीं दी गई थी.

सोमवार को संवाददाता सम्मेलन में डब्ल्यूएचओ महानिदेशक टेड्रोस एडनोम गेब्रेयेसस ने कहा था कि पिछले हफ्ते लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ले रहे लोगों को मृत्यु और हृदय संबंधी समस्याओं का अधिक खतरा होने को ध्यान में रखते हुए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के वैश्विक चिकित्सीय परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) पर अस्थायी रोक होगी. डब्ल्यूएचओ ने कहा कि इसके विशेषज्ञों को अब तक उपलब्ध सभी साक्ष्यों की समीक्षा करने की जरूरत है.

जब दुनिया भर में देशों ने कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल की संभावना तलाशी है, ऐसे में मई के शुरूआती हफ्तों में कई विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यह कोई चमत्कारिक औषधि नहीं है और कुछ मामलों में यह घातक भी हो सकता है. डब्ल्यूएचओ की ताजा घोषणा के बाद, कुमार जैसे चिकित्सकों को लगता है कि इस मलेरिया रोधी दवा का कोविड-19 रोगियों पर इस्तेमाल रोक दिया जाएगा, जबकि अन्य मेडिकल विशेषज्ञों ने कहा कि भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर खुद का फैसला ले सकता है.

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फोर्टिस हॉस्पिटल नोएडा में फेफड़ा रोग एवं आईसीयू विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ राजेश कुमार गुप्ता ने कहा कि यह एक तरह का दिशानिर्देश है, डब्ल्यूएचए का कोई फतवा नहीं और इसलिए भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उपयोग करने या इसे रोकने पर खुद का फैसला ले सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस दवा का भारत की आबादी पर प्रभाव का आकलन करने के लिये खुद का कोई अध्ययन या राष्ट्रीय रजिस्ट्री देश के पास नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘और, चूंकि डब्ल्यूएचओ ने जो कहा है उसे स्वीकार करना बाध्यकारी नहीं है, ऐसे में हमारे पास अन्य विशेषज्ञों के विचारों को स्वीकार करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है. अन्यथा लोग सवाल करेंगे कि किसी आधार पर हमनें कोविड-19 रोगियों पर इस दवा का इस्तेमाल जारी रखा है.’’

महामारी के तेजी से फैलने और कोविड-19 के प्रभावी उपचार की तात्कालिकता को लेकर अमेरिका सहित कई देशों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर निर्भर होना शुरू कर दिया है. भारत इस दवा का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उसने अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटेन जैसे देशों को इसकी बड़ी मात्रा में आपूर्ति की है. इस मलेरिया रोधी दवा को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अचूक दवा होने का दावा करने के बीच ट्रंप प्रशासन ने काफी मात्रा में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की गोलियां जुटा ली हैं, जबकि अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने इस दवा के दुष्प्रभावों के बारे में एक सुरक्षा परामर्श जारी किया है.

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